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Feb 1, 2022

कविता- सरस्वती वंदना

 - श्याम सुन्दर श्रीवास्तव ‘कोमल’

वीणापाणि नमन चरणों में, माँ स्वीकार करो ।
ज्ञान ज्योति के नव प्रकाश का, माँ विस्तार करो ।

आओ माँ इस हृदय- कमल पर, आसन लो मन पावन कर दो ।
झुलसा तन अज्ञान ऊष्णता, कृपा वृष्टि कर सावन कर दो ।

माँ मुझको दो शब्द सम्पदा, हृदय -ज्ञान की ज्योति जला दो ।
हृदय- सरोवर में भावों के, अनगिन कमल प्रसून खिला दो ।

जग में व्याप्त ईर्ष्या हिंसा, स्वार्थ विकार हरो ।
ज्ञान- ज्योति के नव प्रकाश का, माँ विस्तार करो ।।

माँ तेरा होना शुभ सूचक, ध्यान सदा फलदायक  ।
तेरी भक्ति सदा सुखकारी, मंगल की परिचायक ।

बहे भाव की नव निर्झरिणी,  कि शुभ विचार जगें ।
द्वेष, कपट, छल, दंभ, अमंगल, मन से दूर भगें ।

पद कमलों में शीश धरूँ माँ, पाणि पसार धरो ।
ज्ञान ज्योति के नव प्रकाश का, माँ विस्तार करो ।।

नवल भाव की जग कल्याणी, कविता सरस बहे ।
गीत, छंद, नवगीत, सवैया, नित-नित कण्ठ कहे ।

भाव बोध रस अलंकार मिल, शब्द शक्तियाँ शैली ।
रचें अनूठे छंद भावना, पनपे नहीं विषैली ।

माँ! तुम दो वरदान निरन्तर, बन उपहार झरो ।
ज्ञान ज्योति के नव प्रकाश का, माँ विस्तार करो ।

सम्प्रति-  व्याख्याता-हिन्दी, अशोक उ. मा., विद्यालय, लहार, जिला- भिण्ड (म०प्र०), मो०- 8839010923, komalsir17@gmail.com

1 comment:

शिवजी श्रीवास्तव said...

सुंदर वंदना।माँ वीणापाणि के चरणों मे नमन।बधाई