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Sep 3, 2021

बाल कहानी- चोरनी

-सुधा भार्गव

  सुंदर सी  एक खंजन चिड़िया थी। बड़ी रंगबिरंगी! काली, सफेद, भूरी। उसकी सुंदरता का रहस्य उसकी चंचल आँखें थीं। उसे  नदी- तालाब का किनारा बहुत अच्छा लगता। जब देखो वहाँ बैठी पूँछ हिलाती रहती। उसके चलने का तरीका भी अजीब था। फुदकती नहीं बल्कि दौड़कर चलती।  खेतों में खूब मस्ती से दौड़ लगाती, कीड़े -मकोड़े गपक गपक खाती। उसके डर से कीड़ों में भगदड़ मच जाती पर वह तो उड़ते कीड़ों को भी लपक लेती।  ठंडी हवा में उसकी लहराती उड़ान देखते ही बनती। इतराती  हुई चिटचिट करती सुरीली आवाज में उसका स्वर गूँजता तो खंजन चिड़ा बड़ा खुश होता और उस पर ढेर सा  प्यार उमड़ पड़ता।  

    फुर्सत में वह नदी के घाट पर उतर पड़ती जहाँ धोबिनें कपड़े धोतीं। वह मजे से उनके बीच टहलने लगती और छेड़ देती अपनी मधुर तान। बेचारा चिड़ा उसका इंतजार करता रहता। जब बहुत देर हो जाती तो झुँझलाकर चिल्लाता  अरे धो लिए बहुत कपड़े ..अब आजा धोबिन।’ 

   चिड़िया तुरंत उड़कर प्यालेनुमा घोसले में पहुँच जाती। जहाँ चिड़ा उसके इंतजार में आँखें बिछाये रहता।

     खंजन चिड़िया को गर्मी बहुत लगती थी। गरम हवा चलने पर वह बेचैन रहने लगी। 

एक दिन खंजन चिड़ा से बोली – तू  मुझे बहुत प्यार करता है ?’

हाँ इसमें पूछने की क्या बात है ?’

जो मैं कहूँगी मेरे प्यार की खातिर करेगा ?’

यह तिरवाचा क्यों भरवा रही है ? जो कहना है सीधी तरह बोल दे।’ 

मुझे तो कश्मीर जाना है। सुना है वहाँ फूलों से ढकी घाटियाँ हैं। खुशबू भरी हवा सब समय बहती है। बीच बीच में पानी के झरने फूट पड़ते हैं। तुझे तो मालूम ही है मुझे पानी का किनारा बहुत अच्छा लगता है। झरने के किनारे बैठकर उसका ठंडा  मीठा पानी पीऊँगी और पानी से भी मीठा गाना गाकर तुझे खुश कर दूँगी।चिड़ा उसकी बात पर हंस पड़ा। 


    अगले  दिन सुबह ही दोनों कश्मीर की ओर उड़ चले। वहाँ पहुँचते ही खंजन चिड़ा ने सबसे पहले अपनी चिड़िया के लिए हरे भरे पेड़ पर सुंदर सा घोंसला बनाया। वह पेड़ एक झील के  किनारे था। झील की लहरें जब पेड़ के लंबे मजबूत तने से टकरातीं तो  घोंसले में बैठी खंजन चिड़िया का  पंख फैला कर ठुमकने का मन होता।     

    कुछ दिनों बाद खंजन चिड़िया सलोने से दो बच्चों की माँ बन गई। वे बड़े ही नाजुक थे। उनके पँख भी नहीं निकले थे। दोनों पीले थे। इसलिए एक का नाम निबुआ  और दूसरे का नाम पिलुआ  रख दिया । चिड़िया उनकी देखभाल करती और चिड़ा उनके लिए दाना लेने जाता। चिड़िया अपनी चोंच में दाना लेकर बच्चों की चोंच में डालने की कोशिश करती पर वे तो अपनी चोंच ठीक से खोल ही नहीं पाते थे। इसलिए दाना अंदर न जाकर  बार बार बाहर की ओर लुढ़क पड़ता । लेकिन चिड़िया अपनी कोशिश नहीं छोड़ती  । अपने प्यारे बच्चों को भूखा कैसे देख सकती थी! बच्चों का पेट भर जाता तब कहीं उसकी आँखों में चमक आती। 

   एक दिन खंजन चुग्गे की तलाश में गया। लौटते समय बरसते पानी में भीग गया। घोंसले में आते ही आंक्ची.. आंक्छी शुरू हो गई। सुबह देर से उसकी नींद खुली।  बुखार के कारण उसके सिर में  इतना दर्द कि उससे उठा ही नहीं गया। इधर -उधर आँख  घुमाई चिड़िया कहीं नजर न आई । समझ गया वह दाना लेने जा चुकी है।

   खंजन माँ  एक खेत में उतरी कुछ दाने खाकर अपना पेट भरा और कुछ दाने अपनी चोंच में भर लिए। वह उड़ने ही वाली थी कि एक किसान ने दूर से उस पर एक अंगोछा फेंक दिया । वह उसकी लपेट में  आ गई। अँगोछे को  उठाते हुए किसान चिहुँक पड़ा –पकड़ लिया.. पकड़ लिया  चोरनी को। न जाने कब से चोरी चोरी मेरा अनाज खा रही है और ढेर सा चुराकर ले जाती है। आज तुझे नहीं छोडूँगा।’ 

  चिड़िया गिड़गिड़ाई –किसान भाई मेरे बच्चे भूखे होंगे। मुझे दाने ले जाने दे । उन्हें खिलाकर वापस आ जाऊँगी। तब चाहे तुम सजा दे देना। मैं सब भुगतने को तैयार हूँ।’ 

   ‘मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो तुझे छोड़ दूँ। एक बार गई तो क्या लौटकर आने वाली है। चोरनी कहीं की।उसने आँखें तरेरीं।   

   चिड़िया गुस्से से भर उठी और बोली-देख किसान गाली तो दे मत।  मैं चोरनी किस बात की! तेरे खेत के कीड़े खा- खा कर फसल को बचाती हूँ। वरना वो कीड़े तेरी फसल को सफाचट कर के रख दें। एक तरह से तेरे खेत के लिए तो काम ही करती हूँ। उस मेहनत के बदले तू मुझे क्या देता है? इस फसल पर मेरा भी तो हक है। चोर तो तू है जो मेरा हक मारे बैठा है। मैंने चार दाने क्या खा लिए मुझे चोरनी कहता है। तू तो न जाने मेरे हिस्से का  कितना  अनाज  हजम कर चुका है। अब बता चोर तू है या मैं।’ 

  ‘ज्यादा बढ़ बढ़कर मत बोल । मैंने कहा था क्या ..मेरे खेत के कीड़े -मकोड़े साफ कर दे। कल से आने की जरूरत नहीं।

   चिड़िया की चीं-चीं और किसान की टै-टै सुन चिड़ियों के झुंड आकाश से उतर  पड़े और उन्हें घेर लिया। एक बूढ़ी समझदार चिड़िया आगे आकर बोली – खंजन बिटिया चिंता न कर। हम सब तेरे साथ हैं। कल से कोई चिड़िया किसी खेत की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखेगी। और किसान तू भी सुन ले। जब तक तू और तेरे साथी हमें नहीं बुलाएँगे  हममें से कोई इधर झाँकेगा भी नहीं।

     कुछ दिन किसान बड़े खुश रहे चलो चोरनियों से छुटकारा मिला। लेकिन ज्यादा दिनों तक यह खुशी न रही।  कुछ महीने में ही खेतों में छोटे -छोटे कीड़े रेंगने लगे। पत्तों में सफेद सफेद फुनगी सी जम गई। पत्ते काले से हो गए। वे बीमार नजर आने लगे। यह देख किसान घबरा गए। अब उन्होंने समझा कि चिड़ियाँ कीड़े -मकोड़े खाकर उनका कितना उपकार करती थी। 

    एक सुबह किसान के बच्चों का कोलाहल सुनाईं  दिया।  वे मुट्ठी भर  दाना बिखेरते हुए चिल्ला रहे थे ..

आओ री चिड़िया  

चुग्गो री खेत 

खाओ री दाना 

भर -भर पेट 

जल्दी ही आकाश पंखों की सरसराहट से भर उठा। भोले-भाले  बच्चों के बुलाने  पर चिड़ियाँ  अपने को रोक न सकीं। मन की सारी कड़वाहट घुल गई।  झुंड के झुंड चिड़ियों के धरती पर उतर पड़े। इस बार उन्हें कोई चोरनी कहने वाला न था। सारे किसान और बच्चे उनको चुगता देख बहुत आनंदित हो रहे थे।

 

सम्पर्क: जे. 703स्प्रिंग फील्ड्स17/20 अम्बालिपुरा  विलेजबल्लान्दुर गेटसर्जापौरा रोडबंगलौर 560102Email-subharga@gmail.com


2 comments:

Anita Manda said...

वाह, बहुत सुंदर कहानी। बधाई।

शिवजी श्रीवास्तव said...

वाह,बहुत सुंदर कहानी।बधाई।