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May 3, 2021

लघुकथाः उम्मीद की डोर

- माधुरी महलवाला, लखनऊ

जब से लॉकडाउन शुरू हुआ, मैं सुबह से शाम तक एक अलग तरह की ठक्क-ठक्क सुना करती थी।

पहले भी आती होगी, पर अब बाहरी शोरगुल थम जाने के बाद वो आवाज़ और भी साफ़ हो गयी थी।

जैसे पास ही कोई लकड़ी का काम कर रहा हो। कभी-कभी उत्सुकता होती थी इस बारे में जानने की, पर जा नहीं पा। फिर धीरे-धीरे वो आवाज़ जैसे मेरी जिंदगी का एक जरूरी हिस्सा बनती चली गयी। इस अजनबी शहर में बसे बेटे-बहू के बहुत इसरार के बाद यहाँ आते वक़्त सोचा था कि पोते के जन्म के बाद ज़रा बहू और बच्चे की देखभाल कर लूँ, फिर कुछ वक़्त बाद लौट जाऊँगी। बस तब तक के लि इस परदेस मे अपना मन लगाने की कोशिश में थी कि करोना संकट के मद्देनज़र अचानक देश मे लॉकडाउन घोषित हो गया। मेरा मन बोझिल होने लगा। नन्हे पोते की किलकारियाँ, बेटे-बहू द्वारा मेरा ख़ूब ख़्याल रखे जाना... इन सब पर अपने घर की याद हावी होने लगी। मेरा अनमनापन बढ़ते-बढ़ते अब छटपटाहट में बदलने लगा। मन को धीर बँधाने अब चंद चीज़ें ही रह गईं- जैसे रोज सुबह खिड़की पर गौरैया का चहचहाना, कमरे में अगरबत्ती का महकना और शाम तक इसी ठक्क-ठक्क का सुनाई पड़ना। ये गवाह थी... कि ज़िन्दगी चल रही थी। सबकुछ अभी बन्द नहीं हुआ था। मेरा भरोसा बना हुआ था कि जल्द ही सब ठीक हो जागा और बेटे- बहू -पोते को लेकर मैं जल्द ही अपने शहर लौट सकूँगी

लेकिन पिछले 2-3 दिनों से वो आवाज़ अचानक रुक ग थी, साथ ही मेरी उम्मीद की डोर भी कमज़ोर पड़ने लगी थी। आखिरकार एक सुबह अकुलाहट बहुत बढ़ ग, तो मास्क लगाकर मैं टहलते हुए मकान के पिछले दरवाजे से निकलकर कुछ ही कदम दूर बसी बस्ती की तरफ़ बढ़ ग। अंदाजन जिस तरफ़ से वो आवाज़ आती थी...वहाँ कुछ खोलियाँ थीं। एक खोली के आगे लकड़ी के सामान, और बेतरतीब पड़े औजारों के बीच मलिन कपड़ों में एक बेहद कमजोर शख़्स उदास बैठा हुआ था। उसकी मायूसी की वजह समझना मेरे लि मुश्किल नहीं था। मैंने पर्स में से रुपये निकालकर उसकी ओर बढ़ा, तो उसने ना में सर हिला दिया। फिर मैंने फ़ैसला लेने में वक़्त नहीं लगाया। पास रखे एक लकड़ी के खूबसूरत नक्काशीदार पालने की ओर इशारा किया कि मुझे ऐसा ही एक बड़ा पालना चाहिए। तब उसने मुस्कुराकर रुपये ले लिए, और उसी मुस्कान का सिरा थामे मैं वापस चल दी। जानती थी कि कुछ ही देर बाद ठक्क-ठक्क की आवाज़ फिर शुरू हो जाएगी...और ये भी जानती थी कि जल्द ही मैं अपने घर लौटने वाली हूँ...

1 comment:

Sudershan Ratnakar said...

सुंदर