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Feb 1, 2021

जीवन दर्शन- गृहिणी की गरिमा

 -विजय जोशी (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल , भोपाल)

सृष्टि नहीं नारी बिना यही जगत आधार

नारी के हर रूप की महिमा बड़ी अपार     

पुरुष प्रधान समाज में एक ओर जहाँ उसका योगदान सदैव चर्चा का विषय बना रहता हैवहीं नारी का अपेक्षाकृत कहीं अधिक योगदान नींव के पत्थर के माफिक दबा तथा अचर्चित रहता है। याद रखिये आदमी एक बार में केवल एक जीवन जीता है यानी पुरुष कावहीं दूसरी ओर नारी अनेक रूपों में एक साथ प्रवाहित होते हुए सदैव समर्पित सेवा में रत रहती है। फिर भले ही वह रूप हो माँपत्नी या बहनबेटी का। इतने रोल एक साथ निभा पाना किसी नट की कार्य कुशलता से भी कई गुना ऊपर है। पर हममें से कितने लोग जीवन में इसका सही मूल्यांकन कर पाते हैं। इस संदर्भ में मेरे एक मित्र ने बहुत ही सुंदर प्रसंग से हाल ही में मेरा साक्षात्कार करवाया।      

एक बार अपनी सेवा का मूल्यांकन तथा उसमें अभिवृद्धि के उद्देश्य से एक पत्नी ने पति से निवेदन किया कि वह उन्हें कम से कम छ: कमियाँ बताने का कष्ट करे ताकि वह अपनी आदतों में और  सुधार कर एक बेहतर पत्नी बन सके।     

यह सुनकर पति आश्चर्यचकित होते हुए असमंजस में पड़ गया। उसने सोचा कि वह बड़ी आसानी से अनेक कमियाँ गिना सकता हैजिनमें सुधार संभव है। पर फिर उसने गहराई से सोचा तो पाया कि उसकी पत्नी भी तो उसकी अनगिनत खामियों की सूची थमा सकती है। पूरे मनन तथा चिंतन के बाद पति ने पत्नी से कहा कि तुम मुझे सोचने के लिये कुछ समय दो। कल तक मैं इसका उत्तर दे दूँगा। अगली सुबह पति जल्दी आफिस गया और फूलवाले से एक सुंदर सा गुलाब का गुलदस्ता तैयार करवाया तथा एक चिट्ठी के साथ घर भिजवा दिया। चिट्ठी का मजमून था मुझे न तो तुम्हारी कमियाँ मालूम हैं और न ही जानने की इच्छा है। जैसी भी हो मुझे सबसे अधिक अच्छी लगती हो। 

और शाम को जब पति घर लौटा तो देखा कि पत्नी घर की देहरी पर ही उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। उसकी आँखें आँसुओं से आप्लावित थीं और अब यह कहने की जरूरत ही नहीं थी कि जीवन की मिठास कई गुना बढ़ गई थी। पति भी पत्नी को प्रसन्न पाकर खुश हो गया।     

मित्रों बात बहुत छोटी सी है पर भाव बहुत गहरा है। अंग्रेजी की एक कहावत है कर्टसी बीगेट्स कर्टसी। सुख देने से सुख मिलता है और दुख से दुख।

स्वर्ग नरक किसने देखा है

पाप पुण्य का क्या लेखा है

सुख देने से सुख मिलता है

दुख से दुख मिलता है

अतएव अच्छे कार्य की सराहना में कभी कंजूसी न करें। ऐसी बात चट्टान पर लिखें ताकि आने जाने वाले भी देख सकें तथा सदा याद रख सकें। कोई कभी न भूले। अच्छाई के प्रति लोगों की आस्था बढ़े। समाज में सकारात्मकता का सृजन हो। बुरी बात रेत पर लिखें ताकि हवा के बहाव में उड़ जाए। अनावश्यक रूप से याद रख न तो मन को बोझिल रखें और न ही समाज को नकारात्मकता का संदेश दें। अनावश्यक एवं अनर्थक आलोचना से बचकर रहने में ही समझदारी है।  

ज़िंदगी में ये हुनर भी आजमाना चाहि

जंग गर अपनों से हो तो हार जाना चाहि

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com


52 comments:

Unknown said...

आदरणीय प्रभु अत्यन्त मार्मिक भाव में नारी रुप का मान सम्मान पावन प्रेम सहित जो उल्लेख किया गया है। सराहना करना ही सुख कि अनुभूति है।
सुभाष चंद्र पारे भोपाल

Unknown said...

माननीय सुन्दर लेख हेतु बधाईयां।
सुभाष चंद्र पारे।

विजय जोशी said...

सुभाष भाई, आपने इतने मनोयोग से पढ़कर प्रतिक्रिया देने का कष्ट किया सो हार्दिक धन्यवाद. नारी तो जगत जननी है संपूर्ण मान सम्मान की अधिकारी. आलेख उनके योगदान के प्रति मंत्र पुष्पांजलि सम विनम्र प्रयास है. सादर

Unknown said...

मैंने अपने विचार व्यक्त किए हैं। अति सुंदर लेख हैं। मा के रूप में ईश्वर से बड़ी है।

Unknown said...

सर, यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता. आपका यह लेख भी इस बात की पुष्टि कर रहा है. नारी को नारायणी भी कहा गया है. नारी तो पुरुष के सौभाग्य की रचना करती है. आप का यह लेख पढ़ने से किसी भी घर का वातावरण सकारात्मक ऊर्जावान बन सकता है. सुन्दर लेख के लिए बहुत बहुत बधाई.

मधुलिका शर्मा said...

बहुत सुंदर लेख, नारी की महिमा,विशाल मन और निश्च्छल प्रेम का बहुत सुंदर उल्लेख किया है आपने। नारी सदैव अपने त्याग, बलिदान व्यक्त्तिव से घर-परिवार समाज को आलोकित कर रही है।

मधुलिका शर्मा said...

बहुत सुंदर लेख, नारी की महिमा,विशाल मन और निश्च्छल प्रेम का बहुत सुंदर उल्लेख किया है आपने। नारी सदैव अपने त्याग, बलिदान व्यक्त्तिव से घर-परिवार समाज को आलोकित कर रही है।

वर्तुल सिंह said...

उत्कर्ष लेख। बधाई।

Hemant Borkar said...

सटीक एवं सरल शब्दों में विवरण किया है आपने साहेब । अप्रतिम

VB Singh said...

ह्रदयस्पर्शी रचना। समाज ने नारी के साथ सदैव सौतेला व्यवहार किया है। आपने नारी के साथ न केवल न्याय किया है, साथ ही सुखी व आनन्दित वैवाहिक जीवन जीने का मूल मन्त्र भी हम सबको देकर उपकृत किया। सही कहा कि सुख देने से सुख मिलता है। उत्कृष्ट लेख हेतु हार्दिक बधाई के साथ ही साधुवाद। सादर,

निशिकान्त एडकी said...

बहुत मार्मिकता और सरलता रिश्तो की गहराई दिखाई । अनेक साधुवाद, जोशी जी। 👏👏

विजय जोशी said...

हार्दिक धन्यवाद. वैसे नाम भी साझा किया होता तो अधिक प्रसन्नता होती. सादर

विजय जोशी said...

आपने बहुत ही सुंदर व्याख्या की है नारी के योगदान की. वैसे नाम भी साझा किया होता तो अधिक प्रसन्नता होती. हार्दिक आभार. सादर

Unknown said...

उत्कृष्ट लेख, सुखी व आनन्दित वैवाहिक जीवन जीने का मूल मन्त्र प्रदान करने हेतु साधुवाद।

सादर : सौरभ खुराना

विजय जोशी said...

बहन मधु, अद्भुत समायोजन नारी के योगदान का किया है आपने
- जग के मरुथल में जीवन की नारी ज्वलंत अभिलाषा है
- ममता की त्याग तपस्या की यह श्रद्धा की परिभाषा है
यही स्नेह मेरी शक्ति भी है. सस्नेह.

Unknown said...

Bahut Sundar sir

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार. व्यक्तिगत व्यस्तताओं के बावजूद आपने सदा न केवल पढ़ा बल्कि हौसले में भी अभिवृद्धि की है. अब तो हमारे संबंध रजत जयंती की सीमा रेखा से भी काफी आगे निकल चुके हैं मेरे लिये यह गर्व की बात है. हार्दिक आभार

कृष्ण प्रकाश त्रिपाठी said...

सार गर्भित लेख. पढ़ कर आनंद आया. स्त्री की महिमा के लिए शब्द कम हैँ

विजय जोशी said...

आभार बहुत छोटा शब्द होगा. रजत जयंती की सीमा रेखा से भी आगे बढ़कर हमारे निःस्वार्थ संबंध पर मुझे बेहद गर्व है. हार्दिक आभार. सादर

विजय जोशी said...

प्रिय हेमंत, हार्दिक धन्यवाद. ऐसे ही पढ़ते रहना सदा. सस्नेह

V.k . Shukla. Bhopal said...

महोदय
अनेकों साधुवाद। नारी अद्भूत। नारी पूर्ण ।
प्रक्रति ने यश दिया व सब कुछ दिया।
अत्यंत रोचक
विनोद कुमार शुक्ल
भोपाल

विजय जोशी said...

आदरणीय सिंह सा., जीवन में आप जैसे सहृदय मित्र का मिलना पिछले जन्म के किसी पुण्य के फल का प्रतिफल है. आपकी सहृदयता मेरे अंतस के सुख का सोपान है. आप तो लखनऊ सभ्यता के गौरव हैं. सादर साभार आपका आभार.

विजय जोशी said...

निशिकांत भाई, आप बहुत सरल सज्जन तथा विद्वान हैं जो मेरी इस विचार यात्रा के शुभेच्छु व हितचिंतक हैं. सादर साभार अंतर्मन से आभार

विजय जोशी said...

प्रिय सौरभ, यही सोच सुखी जीवन की कुंजी है. सस्नेह

Unknown said...

रामगोपाल ठाकुर

विजय जोशी said...

हार्दिक धन्यवाद सादर

विजय जोशी said...

हार्दिक धन्यवाद पसंदगी के लिये. कभी कभी लगता प्रयत्न व्यर्थ नहीं हैं. सादर

विजय जोशी said...

विनोद भाई, लखनऊ से जुड़ी राम लक्ष्मण रूपी आप व सिंह सा. रूपी जोड़ी का बहुत अनुग्रह है मुझ पर. आप के कारण भेल आज तक अपना लगता है. सो साधुवाद. सादर

विजय जोशी said...

भाई राम गोपाल, आप बहुत नेक इंसान हैं सुंदर कांड के वीर हनुमान समान. हार्दिक धन्यवाद

देवेन्द्र जोशी said...

नारी की महत्ता तो वर्षों से लिखी जा रही है। कमियां हर किसी में होती है। नारी प्रायः पुरुष की कमी आसानी से स्वीकार कर लेती हैं, जबकि पुरुष बिरले ही ऐसे मिलेगें। आजकल जैसे नारी अपराध में वृद्धि देखने को मिल रही है उसमें यह यह यदि यह आलेख कुछ भी कमी कर सके तो जोशी जी का यह लेख एक महान सामाजिक सुधार की नींव का पत्थर साबित होगा। साधुवाद!

विजय जोशी said...

आदरणीय, आपके शब्दों में पत्थर को अहिल्या बना देने का सामर्थ्य है. मुझे वे दिन याद हैं जब आपके मार्गदर्शन, संबल व उसके सहारे मेरे साथियों ने कई साहसिक निर्णय का जोखिम तक लेकर सफलता का जामा पहनाया. वह दौर सदा कायम रहेगा अंतर्मन में. मेरे विनम्र प्रयास को आपका आशीर्वाद बहुत मायने रखता है. हार्दिक आभार. सादर

Unknown said...

सुन्दर लेख

Mhendra gagan said...

स्त्री को सही परिप्रेक्ष्य में समझने-समझाने वाला आलेख

Alpana Mishra said...

बहुत सुंदर लेख जिसमें ना केवल एक नारी का मान और सम्मान निहित है बल्कि एक सुखद वैवाहिक जीवन का अमूल्य राज भी छिपा है।��������

वर्तुल सिंह said...

सादर प्रणाम जोशी जी । 💐

Alpana Mishra said...

प्रश्नचिह्न् त्रुटिवश आ गए हैं, कृपया उसे अनदेखा करें।

विजय जोशी said...

महेंद्र भाई, जो जीता वही सिकंदर. कुल मिलाकर आप विजयी रहे. आपने तो अनेक रचनाकारों से समाज का साक्षात्कार करवाया है और वह भी निर्मल मन से. सो हार्दिक धन्यवाद

विजय जोशी said...

शब्द गौण होते हैं, महत्वपूर्ण तो भाव होते हैं जो मेरे लिये संजीवनी का काम करते हैं. पसंद आया सो लिखना सफल हो गया. सो हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

सादर साभार : अंतर्मन से आभार वर्तुल जी. यही स्नेह सदा बना रहे इसी कामना के साथ. सादर

Vijendra Singh Bhadauria said...

निशब्द रह गया पढ़कर

विजय जोशी said...

प्रिय प्रो. विजेंद्र, इस विचार यात्रा में आप तो मेरे हमसफर, हमदर्द, हमराज़ यानी सब कुछ हैं. आभार से अधिक तो सम्मान और स्नेह के अधिकारी.

विजय जोशी said...

सादर साभार आपका अंतर्मन से आभार

Mandwee Singh said...

आदरणीय,
सादर अभिवादन।आपके उत्कृष्ट विचार अन्तस् के पवित्र भाव के साथ मार्मिक शब्दों की मोती संग सोद्देश्य आलेखों को जब गढ़ते हैं,तब मन बार -बार यहीं कहता है--केशव कहि न जाई क्या कहिए...…...।पुरुष प्रधान समाज मे नारी की गरिमा, मान-सम्मान, उसकी सेवा भाव का सही आकलन तथा सफल वैवाहिक जीवन का राज आप जैसा बुद्धिजीवी ही कर सकता है।आलेख पढ़कर मन पुलकित है,विभोर है।नारी मन की बात कैसे पढ़ लेते है?हार्दिक बधाई, आभार और अभिनन्दन उत्तम लेखन के लिए।नए आलेखों के इंतजार में----सादर माण्डवी सिंह।

Sk Agrawal said...

From DR S K Agrawal
The word VIJAY JOSHI carries Vijay (victory),जोश and यश
My dear friend deserves a lot of appreciations for his guidace and inspiring आर्टिकल to people like us
The current one is one of such items
साधुवाद
धन्यवाद बहुत कम है इनके लिए

विजय जोशी said...

प्रिय मित्र श्रीकृष्ण, आप तो HOD रहे हैं MNNIT, Allahabad में सो आपके लिये क्या कठिन है. सफल तो होना ही था. यह बात मुझे भलीभाँति ज्ञात है पिछले पचास साल से जब हम कालेज में साथ थे. मेरा लिखना कोई बड़ी बात नहीं. यह तो वक्त कटी का जरिया है, वरना पुलिया पर बैठ कर निंदा रस या नई पीढ़ी को कोसने का उपक्रम करना पड़ता. डिजिटल लाइब्रेरी का क्या हुआ. मेमरी कार्ड डाला या नहीं. सादर साभार

Unknown said...

नारी सर्वत्र पूज्यते, नारी अपने अनेको किरदारों का सफलता पूर्वक निर्वाहन करती हैं, आलोचनाएं भी बहुत सहती हैं, फिर भी अपने कर्तव्यपथ पर अडिग चलती रहती हैं,समस्त नारी जगत को मेरा सादर प्रणाम, अतिसुन्दर वृतांत भाई साहब।
संदीप जोशी
696, उषा नगर एक्सटेंशन
इंदौर

विजय जोशी said...

प्रिय संदीप, बात के सार को समझ विचार साझा करने के लिये हार्दिक अभिनंदन. सस्नेह

Sudershan Ratnakar said...

नारी के सम्मान देता सुंदर आलेख।

संदीप जोशी said...

आदरणीय भाई साहब हमे आप पर गर्व हैं।

रजनीकांत चौबे said...

आदरणीय सर , बिल्कुल सही आकलन किया है। वह पंक्ति बहुत शानदार थी कि मैं कई कमियां आसानी से गिना सकता हूँ उसी समय उन्होंने अपने अंदर झांक स्वयं का मूल्यांकन कर उन कमियों को भूल सद्गुणों की सराहना की। सटीक व यथार्थ लेख������ बधाई सर जी।

ऊषा चौधरी said...

नारी त्याग और सहनशीलता की मूर्ति है

Unknown said...

ईश्वर ने प्रकृति और पुरुष दो तत्वों का सृजन किया. प्रकृति के अभाव पुरुष और पुरुष के अभाव में प्रकृति निरर्थक है. इनमें सही संतुलन स्वर्ग और संतुलन का अभाव नर्क की कल्पना को साकार कर देता है. किसी भी घर सुख,समृद्धि और शांति का तभी निवास होता है जब गृहलक्ष्मी प्रसन्न हो. बहुत सुन्दर लेख, हार्दिक बधाई.
पुरुषोत्तम तिवारी 'साहित्यार्थी' भोपाल