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Feb 12, 2020

परहित सरिस धरम नहिं भाई।

परहित सरिस धरम नहिं भाई
परपीड़ा सम नहिं अधमाई।।
 - डॉ. रत्ना वर्मा
हमारी धरती बहुत खूबसूरत है। इस मौसम में तो प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है। चारो तरफ बिखरी हरियाली, रंग-बिरंगे असंख्य फूल, तितलियाँ, भौरों का गुंजन, पंछियों का चहकना, ये सब मिलकर धरती को और निखार देती है। आप सुंदरता देखेंगे तो चारो ओर आपको सुंदरता ही नजऱ आएगी, अच्छाई देखेंगे, तो आपके आस-पास अच्छे और भले लोग नजर आएँगे। ...तो बात नज़रिये की है। दुनिया में एक ओर जहाँ अच्छाई है, भलाई है; तो दूसरी ओर बुराई भी भरी पड़ी है। परंतु गुणिजन कहते हैं- दुनिया कायम है इसका मतलब अच्छे लोग मौज़ूद हैं।  
धामिर्क आस्था वाले देश में आज देश में बहुत बड़े- बड़े भव्य मंदिर स्थापित हो गए हैं, जहाँ भक्तगण अपनी इच्छा से भरपूर दान देते हैं। जब तब समाचार भी मिलते रहते हैं कि अमुख मंदिर में इतने किलो सोना चढ़ावे में दिया गया या हीरे- मोती जड़ित करोड़ों रुपये के हार या मुकुट भगवान को चढ़ाया गया आदि आदि... इनके ट्रस्टी दान में मिले अरबों खरबों रुपयों के अलावा चढ़ावे में चढ़े सोना- चाँदी, हीरे मोती का कैसे हिसाब रखते हैं , यह सब धन कहाँ खर्च होता है ? जैसे अनेकों प्रश्न उठते रहे हैं और कई मामले समय- समय पर उजागर भी होते रहे हैं ; पर यह बहस का अलग ही मुद्दा है ।
 इस बार जो एक अच्छी बात, एक अच्छे परोपकारी काम के बारे में आप सबसे साझा करना है वह है-  पूणे का दगड़ू सेठ हलवाई गणपति मंदिर इस मंदिर की खास बात है कि यहाँ चढ़ने वाले चढ़ावे से कोई भंड़ारा या महाप्रसाद नहीं खिलाया जाता; बल्कि पूणे के ही एक सरकारी अस्पताल में प्रति दिन 1200 मरीजों को चाय, नाश्ता और खाना खिलाया जाता है। इतना ही नहीं उसी अस्पताल के गर्भवती महिला वार्ड का नवीनीकरण करवाने के साथ 70 शिशुओं की क्षमता वाला आईसीयू भी बनवाया है। इन सबके साथ- साथ मंदिर कई अन्य सामाजिक कार्यों से भी जुड़ा हुआ है। इन सबको मिलाकर मंदिर प्रति वर्ष लगभग 15 करोड़ रुपये के सामाजिक कार्य करता है।  इस मंदिर को दगड़ू सेठ हलवाई ने लगभग सवा सौ साल पहले बनवाया था। संभवतः देश में यह पहला एक ऐसा मंदिर है, जिसे इसके बनवाने वाले के नाम से जाना जाता है।
बिना लाभ- हानि के जनहित में,  सेवा के इस प्रकार के कई कार्य देश के अनेक व्यक्ति और अनेक संस्थाएँ करती हैं। जिनके बारे में कभी- कभी मीडिया खबरें दे देती हैं , कई लोगों को सरकार भी सम्मानित कर देती है। जैसे इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार पाने वालों में एक नाम है ओडिसा के डी प्रकाश राव का। झुग्गी बस्ती में चाय बेचकर गुजारा करने वाले प्रकाश राव को यह सम्मान शिक्षा के क्षेत्र सेवा करने के कारण मिला है। राव पिछले कई सालों से कटक शहर में झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चों के लिए एक स्कूल चला रहे हैं। राव का बचपन काफी गरीबी में गुजरा है। पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद गरीबी की वजह से उन्हें 5 साल की उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा था। बड़े होने के बाद उन्हें लगा कि जिस तरह गरीबी की वजह से उन्हें पढ़ाई छोड़ना पड़ी ,ऐसा किसी और बच्चे के साथ ना हो, यही कारण है कि राव को  चाय बेचकर जो भी कमाई होती है, उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा वे गरीब बच्चों की पढ़ाई में लगा देते हैं। सन् 2000 में उन्होंने गरीब बच्चो के  लिए स्कूल बनवाया। शुरू में स्कूल का सारा खर्च वे स्वयं ही उठाते थे फिर बाद में जैसे जैसे लोगों को उनके नेक काम के बारे में पता चलता गया लोग उनके साथ जुड़ते चले गए।
देश और दुनिया में ऐसे अनगिनत लोग हैं जो अपने- अपने क्षेत्र में देश की भलाई का काम बिना किसी उम्मीद के बस करते चले जा रहे हैं। उन सबको तहेदिल से सलाम।
देश की समस्याओं का रोना तो हम हमेशा रोते हैं जीवन में हम सब अनगिनत परेशानियों से भी जब- तब रूबरू भी होते रहते हैं ; परंतु जीवन तब भी चलते रहता है। इन सबसे जूझते हुए, लड़ते हुए हम आगे बढ़ने का रास्ता तलाशते रहते हैं । आगे बढ़ने के लिए  सकारात्मक ऊर्जा मिलती रहे इसके लिए ज़रूरत है, ऐसे काम करने वालों के कामों की सराहना करने की,  इस तरह के कामों को बढ़ावा देने की है; ताकि अच्छे -अच्छे काम होते रहें और हम अपनी धरती की खूबसूरती का, यहाँ के लोगों के परोपकार का गुणगान दुनिया भर में गर्व से कर सकें।
नकारात्मक सोच भीड़ को भेड़चाल की तरफ़ मोड़ता है, जिससे समाज का अहित ही होता है। यदि हम टी वी पर होने वाली परिचर्चाओं को ध्यान से सुनें, तो लोग दिनभर चीख-चीखकर फेफड़े कमज़ोर करते रहते हैं । उससे किसी का रत्तीभर भी भला नहीं होता। ठीक इसके विपरीत परोपकार का कार्य करने वाले ,  बातों के वितण्डे में न पड़कर, सामाजिक हित के कार्य चुपचाप करते रहते हैं। इस धरती को सुखमय बनाने का यही एकमात्र उपाय है। तुलसीदास जी ने भी कहा है-
‘परहित सरिस धरम नहिं भाईपरपीड़ा सम नहिं अधमाई’।। 

1 comment:

Vibha Rashmi said...

फरवरी 12का उदंती आज फ़ुरसत में पढ़ने बैठी ।सारी सामग्री पठनीय व स्तरीय है , हमेशा की तरह कुशल संपादन । आपके आलेख 'अनकही'बेहद पसंद आया । पूरा के "दगडू सेठ हवाई के मंदिर के विषय में जानकारी महत्वपूर्ण है । सहमत हूँ " सामाजिक कार्य का दिखावा " बहुत लोग करते हैं । चैनलों पर भी एंकर्स चीख़ कर अपने फेफड़े ख़राब करते हैं ।सनसनी और उत्तेजना फैलाकर उकसाते भी हैं ।
एक सुन्दर संपादकीय । मेरी बधाई ।