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Jan 27, 2018

सरस्वती-वंदना

सरस्वती-वंदना (चौपाई)
-ज्योत्स्ना प्रदीप

अखिल जगत की अधिष्ठात्री हो,
जननी जग की औ धात्री  हो।
तेजोमय हो अमिट जोत हो,
स्नेह  राग   से   ओतप्रोत हो।

मंजुल ,सुंदर ,ललित ,कलित हो,
तर देती  जब  मनुज भ्रमित हो।
धवल वसन में शशि मुख चमका,
शुभ्र ज्योत्स्ना ज्यों सीपिज दमका।

हे  विद्यारूपे श्लोक,मंत्र में
तेरी लय हर वाद्य यंत्र में।
वेद,ऋचा हर मधु प्रसाद सा,
आखर-आखर ताल नाद सा।

हे शुभदे  तुम नभ -भूतल में,
नग ,पर्वत में ,सागर जल में।
अमिट मधुर सी इक सरगम है,
हर  पल   तेरा  आराधन है।
  
जग छल से माँ  आँसू छलके
आँखें ना  ही  दोषी पलकें।
तुम से ही तो जीवन शोभित 
कभी नहीं हो  सुख ये कीलित।

जीवन जब भी सघन निशा है,
तेरे पग-तल  दिव्य -दिशा है।
मिटे तिमिर वो विमल छंद दो,
महातारिणी  महानंद  दो।

सम्पर्कः मकान न.-32, गली न.-9, न्यू गुरु नानक नगर, गुलाब देवी, रोड, जालंधर, पंजाब 144013, jyotsanapardeep@gmail.com

1 comment:

Unknown said...

बहुत सुंदर आदरणीया