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Jul 25, 2017

मेघ गरजे


मेघ गरजे 

- डॉ. पूर्णिमा राय

पेड़ से ही तो, जिंदगानी है।
आब से ही मिली रवानी है।।
धूप उतरी चमन खिला सुन्दर
बागबाँ को मिली जवानी है।।
मेघ गरजे हुआ गगन पागल
आज धरती दिखे सुहानी है।।

ओस की बूँद फूल पर चमकी
पीर तारों की, ये पुरानी है।।
धूल उड़ती फिज़ा भी, है निखरी
साँझ की ये नयीकहानी है।।
रेत पर बन गए निशाँ देखो
हार में जीत भी मनानी है।।
मुक्त हो कर उड़ें परिन्दे भी
'पूर्णिमाभी हुई दिवानी है।।

सम्पर्क: ग्रीन एवेन्यू घुमान रोडमेहता चौकः 143114, अमृतसरपंजाब,  purnima01.dpr@gmail.com

1 comment:

Vibha Rashmi said...

मेघ गरजे बहुत सुन्दर कविता । बधाई पूर्णिमा जी ।