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May 10, 2016

लौटे परिंदे

लौटे परिंदे

डॉ. राजीव गोयल
1

रवि जुलाहा
किरणों के धागे से
बुने उजाला ।
2
भोर ने धोई
रजनी की कालस
फैला उजास ।
3
सूखा है कुआँ
पनघट उदास
है जेठ मास ।
4
लगते अच्छे
कड़कती धूप में
छाँव के धब्बे ।
5
करे आराम
चितकबरी धूप
पेड़ों के नीचे।
6
ढला जो दिन
धरती छोड़ उड़ी
धूप की चिडी ।
7
जल -समाधि
ले रहा सागर में
थका सूरज । 
 8
लौटे परिंदे
दरख्तों की शाखाएँ
खुशी से झूमीं ।
9
बेचता तारे
चंद्रमा नभ पर
बिछा के रात।
10
व्योम की शय्या
ओढ़कर बादल
सूरज सोया ।
11
वर्षा की झड़ी
सजा गई पेड़ों पे
बूँदों की लड़ी।
12
आई बरखा
मेघों की पालकी में
हवा कहार ।
13
भर मशक
करता छिड़काव
भिश्ती बादल ।
14
नभ -अखाड़ा
भीमकाय बादल
लड़ें दंगल ।
15
ठिठुरे वृक्ष
चुरा ले गया पात
पौष का मास।
16
मौसम धुनें
बैठ पहाड़ पर
हिम की रूई ।
17
कोहरा आया
सुबह से सूरज
बंदी बनाया।
18
डाली से दूर
बन तितली उड़ें
पीली पत्तियाँ।
19
धनी था पेड़
पतझड़ ने लूटा
किया कंगाल ।
20
बातूनी पेड़
गिरते ही पत्तियाँ
चुप हो गया।
21
बसंत काढ़े
धरा की चुनरी पे
फूलों के बूटे।
22
पीली कमीज़
पहने हरी पैंट
सरसों- खेत ।
23
पी -पी के आग
हो गया सुर्ख लाल
यह पलाश ।
24
उड़े अंगार
जली सब पत्तियाँ
पलाश -वन ।
25
चुरा के भागी
बगिया से सुगंध
चोरनी हवा ।


26
फँस चीड़ में
करे चीख-पुकार
उत्पाती हवा ।
27
फल न सही
बूढ़ा आम का पेड़
छाँव तो देगा ।
28
रिश्ते रेशम
गाँठ अगर पड़े
फिर न खुले ।

सम्पर्क- C- 36 यमुना विहार ,दिल्ली-110053, email   : rajiv.goel55@gmail.com

1 comment:

Krishna said...

बहुत सुंदर भावपूर्ण हाइकु !