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Nov 24, 2012

उदंती.com-नवम्बर 2012

मासिक पत्रिका वर्ष-3, अंक-3, नवम्बर 2012

जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं।
- रवींद्रनाथ ठाकुर

ज्ञान का कल्याणकारी प्रकाश



ज्ञान का कल्याणकारी प्रकाश     
- डा. रत्ना वर्मा
संस्कृति की परिभाषा करना आसान काम नहीं है। जितने दिमाग उतनी ही परिभाषाएँ। फिर भी, संस्कृति की एक सीधी सरल परिभाषा यह भी है- संस्कृति समाज की आकांक्षाओं का समिष्ट योग होती है। मनुष्य की आकांक्षाएँ  कुछ दीर्घकालीन और कुछ अत्पकालीन होती हैं। दीर्घकालीन आकांक्षाएँ वे हैं जो मानवता का अस्तित्व सुरक्षित बनाये रखने से संबंधित होती है, अत: चिरस्थायी होती हैं। जबकि अल्पकालीन आकांक्षाएँ मानवीय अस्तित्व को ऋतु काल के अनुसार सुखद बनाये रखने से संबंधित होती हैं अत: बदलती रहती हैं समाज की संस्कृति की इमारत की नींव तो दीर्घकालीन मानवीय आकांक्षाओं की बनी होती है और ऊपरी ढाँचा अल्पकालीन आकांक्षाओं से गढ़ा होता है जिस पर ऋतु काल के अनुरूप रंग-रोगन बदलता रहता है।
इसी यथार्थ में निहित है हमारी अनुपम संस्कृति की सम्पन्नता।
ऋतुएँ अपने विशिष्ट रंग के परिधान धरा को पहनाती है। हम अपने पर्वो त्यौहारों में उन्हें परिलक्षित करते हैं। ठंडी शीतल हवाओं से उड़ती वर्षा की फुहारों के बीच अमराई में पड़े झूले पर झूलते हुये, राधा-कृष्ण के झूला गीत गाकर कृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी मनाया जाता है। सावन की काली अँधियारी रात में जन्माष्टमी पर कृष्णलीला की झांकिया सजा कर रास लीला आयोजित करके हम अज्ञान के अँधेरे को अपने महानतम लोकप्रिय रसिक शिरोमणि पूर्वज की लीलाओं की मधुर स्मृतियों के प्रकाश से मिटा देते हैं। हमारा तन-मन कृष्ण भगवान की जनकल्याणकारी लीलाओं की गीत-संगीतमय स्मृति से उनके प्रति कृतज्ञतारूपी भक्ति-भाव से भर उठता है तो हम अपने सभी पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का पर्व पितर-पक्ष मनाने लगते हैं।
अपने पितरों को अर्पित कृतज्ञता के अन्न-जल, फल-फूल को जब हम धरती पर चारों ओर लहलहाती हरियाली खेतों में देखते हैं तो धरती माता की अदम्य अथाह रचनात्मक शक्ति के प्रति आदर भाव से भर उठते हैं। चराचर की जननी प्रकृति की इस असीम शक्ति की प्रतीक दुर्गा माँ है। हम दुर्गा पूजा का उत्सव नव-रात्रि मनाते हैं और साथ ही साथ अपने मर्यादा पुरूषोत्तम पूर्वज सियावर राम की स्मृति में रामलीला आयोजित करते हैं। महिषासुर मर्दिनी माँ दुर्गा की पूजा हो या कि 'मंगल भवन अमंगल हारी' भगवान राम द्वारा रावण वध की लीला हो, हम इनके माध्यम से सत्य की असत्य पर विजय और पुरुषार्थ की शक्ति को अन्याय और दुष्टता के दानवों का विनाश करने के परमार्थ में उपयोग की शाश्वत मानवीय आकांक्षाओं का स्मरण करते हैं। इन त्योहारों के अवसरों पर आयोजित मेलों, उत्सवों से आनंद भी प्राप्त करते हैं।
हमारे पर्व त्योहार हमारी समृद्ध संस्कृति के रत्नदीप हैं जो हमारे गौरवमय अतीत की जगमगाहट से हमारे मन से भयावह आपदाओं- विपदाओं से उपजे अवसाद के अंधेरे को भगाकर हमें उज्जवल, समृद्ध, शक्तिशाली कल्याणकारी और गौरवमय भविष्य की राह पर आगे बढऩे को प्रेरित करते हैं। अत: हमें अपने तीज-त्योहारों की गौरवशाली विरासत को बड़ी निष्ठा और शालीनता से मनाकर सुरक्षित रखने का धर्म निभाना चाहिये।
दीपावली हमारे तीज-त्योहारों की बेजोड़ रत्नमालिका का सबसे चमकीला जगमगाता अनुपम रत्न है। दीपावली पर हमारे घरों पर जगमगाते दिये, रंग-बिरंगी अतिशबाजी, मिष्ठान्न हमारी दीर्घकालीन आकांक्षाओं को प्रदर्शित करते हैं। उन्हीं के प्रतीक हैं गणेश जी और लक्ष्मी जी की मूर्तियाँ जिन्हें हम दीपावली पर पूजते हैं। गणेश जी ज्ञान के प्रतीक हैं और लक्ष्मी जी समृद्धि की
अशिक्षा, अंधविश्वास से उपजे अंधकार को नष्ट करने वाला ज्ञान का कल्याणकारी प्रकाश जो मानवों को आत्मबल देकर पुरूषार्थ देता है। लक्ष्मी प्रकृति की वसुंधरा अर्थात् समृद्धि की प्रतीक हैं। हमारी संस्कृति में ज्ञान और समृद्धि की संयुक्त पूजा अर्चना का विधान रखने के पीछे हमारे महान पूर्वजों का उद्देश्य ही यही था कि हम सचेत रहें कि पूर्ण समृद्धि ज्ञान प्राप्त करते रहने से ही मिलती है। ज्ञान का मार्ग ही समग्र समृद्धि की ओर ले जाती है।
हमारे पूर्वजों के इस संदेश में निहित ज्ञान की श्री का प्रकाश फैलाने का उत्तरदायित्व निभाने का सर्वोत्तम ढंग होगा कि हम अपने आसपास बड़ी संख्या में उपलब्ध विषमताओं से उपजी दरिद्रता के कारण श्रीविहीन लोगों में से कम से कम कुछ को तो साक्षरता की श्री से समृद्ध बनाने का प्रण लें। और हाँ इसके पहले अपने घर में ही देखें कि अंधविश्वासों की कुरीतियों के कारण शताब्दियों से अज्ञान के अंधकार में छटपटाती नारियों को शिक्षा के प्रकाश में पूर्ण मानवीय श्रीयुक्त होने की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं या नहीं। जब मनुष्य के मन में ज्ञान का दीपक जलता है तभी वह मानव बनता है ।

आप सबकी दीपावली मंगलमय हो । 

तीन दिन का महापर्व देवारी



तीन दिन का महापर्व देवारी
-डॉ. परदेशीराम वर्मा
गुसाई तुलसीदास जी ने लंका विजय के बाद श्रीराम के अवध आगमन पर उल्लास का अद्भुत चित्र खींचा है।
नाना भाँति सुमंगल साजे, हरषि नगर निसान बहु बाजे।
छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश के सभी प्रांतों में न केवल नगर बल्कि गाँव-गाँव दीपावली में उल्लास का ऐसा ही वातावरण रहता है। छत्तीसगढ़ में दीपावली त्योहार, विशेषकर गाँवों में देखते ही बनती है। यूँ समझिए कि दशहरे के बाद लगातार दीवाली की प्रतिदिन तैयारी चलने लगती है। घरों की छबाई, छुई से पुताई से लेकर सफाई का काम लगातार चलता है। एक दिव्य रोशनी जल उठती है, दियों के भीतर। यह रोशनी लगातार प्रकाशमान होकर सुरहुती अर्थात गौरा-गौरी पूजन के दिन पूरे प्रभाव के साथ परिव्याप्त होती है।
दशहरे के बाद गाँवों में अगासदिया (आकाश दीप) टाँगने की परंपरा आज भी यथावत है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब रावण वध कर अयोध्या लौटे तो अवध में श्रीराम की विजय को दीपोत्सव के माध्यम से सबने अविस्मरणीय बनाने का प्रयास किया। एक दिव्य परम्परा इस तरह शुरू हुई। दिये न केवल जमीन पर जले बल्कि अगास (आकाश) में भी जलाकर टाँगे गए। बाँस के सहारे दिये को एक विशेष प्रकार के सज्जित बेदी में सजाकर ऊपर ले जाया गया। घर-घर में ऊपर बाँस की पुलगी पर टँगा यही आकाशदीप छत्तीसगढ़ी में अगासदिया कहलाता है। यह अगासदिया जठौनी अर्थात देव-उठनी तक उसी तरह रोज रात को ऊपर आसमान में जलता है।
अगासदिया दशहरा के दूसरे दिन से जलता है, उसी तरह इसी दिन से कार्तिक स्नान भी शुरू होता है। गाँव में कार्तिक स्नान 40 दिन तक चलता है। इसमें 5 दिन कुवाँर के, तीस दिन कार्तिक के एवं 5 दिन अगहन के होते हैं। यह 40 दिन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहद महत्त्वपूर्ण माने गए हैं। ऋ षियों और पुरखों ने इसी ढंग से इन परम्पराओं को निर्धारित किया है।
इसी बीच में दीपावली का पर्व आता है। ठीक बीसवें दिन उसके बाद बीस और स्नान का समय रहता है।
दीपावली के तीनों दिन गाँवों में लगातार नाचने-गाने, मिलने-जुलने के होते हैं। दीपावली से जो महाउल्लास का वर्ष प्रारंभ होता है वह लगातार चलता है। होली तक इसी तरह उल्लासमय वातावरण बना रहता है। दीपावली फिर जेठौनी और फिर गाँव-गाँव मेला मड़ई।
इस दोहे में इसका सुन्दर वर्णन है.......
आवत देवारी लुहि लुहिया, जाबत देवारी बड़ दूर।
जा-जा देवारी अपन घर, फागुन उड़ावै धूर।।
देवारी तिहार: तीन दिन का महापर्व
दीवाली त्योहार को छत्तीसगढ़ी में देवारी तिहार कहते हैं।
छत्तीसगढ़ में दीवाली का त्योहार तीन दिनों का होता है। और यह महज रोशनी का त्योहार बनकर नहीं आता बल्कि यादों के चिराग को रोशन करने का अवसर बनकर आता है। परम्परा है कि छत्तीसगढ़ी व्यक्ति दीवाली में सौ योजन लाँघकर भी अपने गाँव जरूर पहुँचता है। शहर में जा बसा बड़ा से बड़ा व्यक्ति अगर दिवाली में अपने मूल गाँव में गैरहाजिर रहा तो समझिए साल भर उसे उलाहना किसी न किसी माध्यम से मिलेगा- 'अब तो तुमन बड़े आदमी हो गेव ग, गाँव ल भुला देवÓ। इस उलाहने के डर से भी शहरी मनुष्य गाँव जरूर पहुँचता है।
सुरहुत्ती अर्थात लक्ष्मीपूजन का पहला दिन गाँव के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। शाम होते न होते गाँव के बेटे पहुँचने लगते हैं। अब तो हर गाँव में कारों से आने वाले सपूत भी पाये जाने लगे हैं। अलबत्ता हर गाँव में घर के आगे चौंरा बनाने और बढ़ाने की गंवइहा प्रवृत्ति के कारण उनकी कारें घरों तक नहीं पहुँच पा रही हैं। लेकिन गाँव का बेटा कार वाला हो गया है, इस सुख को वे लोग भी महसूस करते हैं जिनके घरों में बेकार जवान बेटे बैठे-बैठे बुढ़ा रहे हैं। शाम ढलते ही जगमग-जगमग माटी के गोड़ी दिये जलने लगते हैं।
सुरहुत्ती अर्थात दीप पर्व के प्रथम दिन गीत गूँज उठता है गाँव में...
करसा सिंगारौं मइया रिगबिग रिगबिग
यह करसा गौरा पूजा का करसा होता है जिसे इसर राजा अर्थात भगवान शिव की अभ्यर्थना के पर्व गौरा-गौरी पूजा के अवसर पर गोंड़ समाज की बहनें अपने भाई के घर आकर तैयार करती हैं। छत्तीसगढ़ में गौरा-गौरी की पूजा गाँव के गोंड़ पारा के गौरा चौंरा में सप्ताह भर पहले शुरू हो जाता है। वे बाजे-गाजे के साथ मिट्टी लाने जाते हैं। उसी मिट्टी से कलाकार शिव-पार्वती अर्थात गौरा-गौरी की मूर्ति बनाता है। इसमें मुखाकृतियाँ नहीं होती; बल्कि प्रतीक के रूप में गौरा-गौरी को पघराया जाता है। पन्नियों से सजी गौरा-गौरी की पिढु़ली देखते ही बनती है।
रात्रि के प्रथम प्रहर में गाँव भर के भक्तजन गौरा-गौरी को चौंरा में पघराते हैं। रात भर गीतों के माध्यम से आराधना की जाती है। अंतिम प्रहर में गौरा-गौरी भक्तों के सिर पर चढ़कर गाँव भर घूमते हैं। फिर उन्हें गाँव के तालाब में सिराया जाता है। दूसरा दिन राउतों का दिन होता है। साल भर जो राउत मालिकों के पशुओं को चराते हैं; उन्हें दीवाली के दिन मालिक स्वयं जाकर घर से निकालते हैं। पूरे सम्मान के साथ। बाजे- गाजे के साथ सभी राउतों को घरों से निकाला जाता है फिर, सब मिल-जुल कर गोबर-धन खुंदाने जाते हैं। गोबर के टीके लगाकर सभी छोटे बड़े एक दूसरे का जय-जोहार करते हैं और इस तरह पुन: अखाड़ची जवान अपना करतब दिखाते हुए वापस गाँव की ओर लौटते हैं।
तीसरा दिन ठेठवारों का होता है। यह मातर तिहार कहलाता है। गाँव भर के लोग मातर जमाने मैदान में जाते हैं। जहाँ पशुओं को डाँड़ खेलाया जाता है।
शाम को पुन: ठेठवारों का काछन निकलता है। मस्ती में झूमते ठेठवार मैदान की ओर जाते हैं। वहाँ ठेठवारों  और ग्वाल-बालों की ओर से मालिकों को दूध पिलाया जाता है। इसके बाद कृष्ण-लीला का अंश प्रस्तुत किया जाता है। रुष्ट इंद्र से गाँव की रक्षा करने वाले भगवान कृष्ण की लीला होती है। इन्द्र का मानमर्दन होता है और सभी मिलजुल कर गाँव लौटते हैं।
दीपावली त्योहार  में छत्तीसगढ़ अल्पवृष्टि और अतिवृष्टि की मार भी भूल जाता है। छत्तीसगढ़ विरागी जनों की धरती है। भाव में डूबे हुए संतों की धरती। लेकिन अब संतों की धरती भी अँगड़ाई ले रही है। कल तक के दोहों में मालिकों की स्तुतियाँ हुआ करती थीं; लेकिन अब राउतों के दोहों में उनकी जिन्दगी का संघर्ष और दु:ख भी प्रकट होने लगा है। व्यंग्य बने दोहे की एक झलक से हम परिवर्तन की आहट पा सकते हैं...
जेखर हाथ म लउठी भइया,
ओखर हाथ म भंइसा।
बघवा मन सब कोलिहा होगे,
देख तमाशा कइसा।
  हमारा यह रोशन प्रदेश
नए राज्य पर प्रकृति की भरपूर कृपा हो रही है। छत्तीसगढ़ आपदाओं  और प्राकृतिक प्रहार से बचा रहता है। सुरक्षित शांत यह प्रदेश अपनी विशेषताओं के कारण सबको अपनी ओर खींचता है। यह सबको आगे बढ़कर गले लगाने वालों का प्रदेश है। संभवत: इसी लिए सब इसे भी भरपूर मान देते हैं। अगर नक्सल समस्या से हमारा प्रदेश मुक्त रहता तो देश के इस अनोखे प्रदेश की गतिशीलता नया इतिहास रचती।
तमाम अंतर्विरोधों और जकड़ के बावाूद छत्तीसगढ़ प्रगति की ओर लगातार अग्रसर है। दीपावली का पर्व छत्तीसगढ़ के लिए प्रति वर्ष नई आशा का संदेश लेकर आता है। दीपावली के ठीक बाद छत्तीसगढ़ का किसान फसल काटता है। फिर उसे खलिहान लाता है। इस तरह अपने घर की कोठी तक अन्न को लाकर सहेजने का क्रम शुरू हो जाता है। दीपावली मनाता हुआ किसान खेत में लहराते धान और पशु-शाला में पगुराते अपने संगी बैल और भैंसा का भी भरपूर मान -सम्मान करता है।
साल भर में एक फसल लेने की छत्तीसगढ़ में परम्परा रही है। अल्प-संतोषी छत्तीसगढिय़ा लगातार उपार्जन कर केवल आर्थिक सम्पन्नता के लिए प्रयास नहीं करता। आज प्रदेश में धान का रकबा तो नहीं बढ़ा है; लेकिन फसल उत्पादन बढ़ गया है। गाँवों के पास तक उद्योग चले आये हैं। गाँव वाले छोटे किसान मजदूर की कमी से त्रस्त हैं। फिर भी अपनी जिजीविषा के बल पर वे धरती का उसी तरह शृंगार कर रहे हैं।
दीपावली अँधेरे से उजाले की यात्रा का पर्व है। देखें यह अर्थपूर्ण लोकरंजक पद, जिसमें दीपों की जगमगाहट है...
भाग जागे रे आगे देवारी,
गँउरा चँवरा मा कुचरागे अँधियारी।
जगमगावत हे दीया घर दुवारी,
   भाग जागे रे आगे देवारी। 

संपर्क: एल.आई.जी.-18, आमदीनगर, हुडको, भिलाई-490009, छत्तीसगढ़, मो.-9827993494, Email- harijoshi2001@yahoo.com

फलों का सरताज सेब



फलों का सरताज सेब
- डॉ. ओ. पी. वर्मा
पूरा विश्व सेब को फलों का सरताज या 'किंग ऑफ फ्रूट्स' मानता है। सेब सर्वव्याप्त, स्वास्थ्यप्रद और स्वादिष्ट फल है।
इसकी उत्पत्ति केप्सियन सी और ब्लेक सी के बीच घने उपवन में हुई है। आज यह स्थान कजाखस्थान में आता है, लेकिन अब  सेब की पैदावार पूरे विश्व में होती है। विश्व में सेब की 7500 प्रजातियां पाई जाती है। रेड डेलीशियस, गोल्डन डेलीशियस, ग्रेनी स्मिथ, मेकिंटोश, जोनाथन, गाला और फ्यूजी आदि इसकी प्रमुख किस्में हैं। चीन, अमेरिका, तुर्की, पॉलेन्ड और इटली इसके प्रमुख उत्पादक देश हैं।
भले आज पूरा विश्व कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के सेबो का दीवाना हो, लेकिन भारत में सेब का इतिहास मात्र 100 वर्ष पुराना ही है। भारत में सेब को लाने का श्रेय सैमुअल इवान स्टोक्स (जन्म - 16 अगस्त, 1882 मृत्यु - 14 मई, 1946)  नाम के अमेरिकन को जाता है। उन्हें भारत में सेब क्रांति का अग्रदूत कहा जाता है।
पोषक तत्वों का अनूठा संगम
सेब में कैलोरी कम होती है। इसमें सोडियम, संत्रप्त वसा या कॉलेस्ट्रोल बिलकुल नहीं होता है। सेब में विटामिन-सी और बीटाकेरोटीन पर्याप्त मात्रा में होता है। इसमें फ्लेवोनॉयड और पॉलीफेनोल्स प्रजाति के अनेक एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं। इसकी एंटीऑक्सीडेंट क्षमता 5900 टी.ई. होती है। सेब में पाये जाने वाले प्रमुख फ्लेवोनॉयड्स क्युअरसेटिन, एपिकेटेचिन, प्रोसायनिडिन बी-12 हैं। इसमें बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन जैसे राइबोफ्लेविन, थायमिन, पाइरिडोक्सीन प्रचुर मात्रा में होते हैं। पोटेशियम, फोस्फोरस और कैल्शियम खनिज तत्वों में प्रमुख हैं।
हालांकि सेब में फाइबर की मात्रा बहुत अधिक नहीं होती है। 100 ग्राम सेब में 2-3 ग्राम ही फाइबर होता है, जिसमें 50प्रतिशत पेक्टिन होता है। लेकिन यह फाइबर सेब के अन्य पोषक तत्व के साथ मिल कर रक्त में फैट्स और कॉलेस्टेरोल की क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है। सेब की रक्त के फैट्स को कम करने की क्षमता फाइबर से भरपूर कई अन्य खाद्य पदार्थों से भी अधिक होती है। लेकिन हृदय रोग में पूरा फायदा लेने के लिए आपको सिर्फ पेक्टिन लेने से काम नहीं चलेगा, बल्कि आपको पूरा सेब खाना पड़ेगा।
सेब के चमत्कारी गुण
पॉवरफुल पॉलीफेनॉल्स: पिछले वर्षों में सबसे अधिक शोध पॉलीफेनोल्स पर हुई है। सेब में इन पॉलीफेनोल्स का अनूठा सन्तुलित देखने को मिलता है, शायद इसीलिए सेब खाने वाले लोगों से रोग भी डरते है। सेब में क्युअरसेटिन नाम का फ्लेवोनॉल प्रमुख फाइटोन्युट्रियेन्ट है, जो गूदे से ज्यादा इसके छलके में होता है। इसके साथ केम्फेरोल और माइरिसेटिन भी महत्वपूर्ण हैं। क्लोरोजेनिक एसिड सेब का प्रमुख फिनोलिक एसिड है, जो गूदे और छिलके में समान रूप से पाया जाता है। सेब की लाल रंगत का राज हमेशा एंथोसायनिन होता है, जो अधिकतर छिलके में ही सिमित रहता है। यदि सेब पूरा लाल है या लाल रंग बहुत गहरा है, तो उसमें एंथोसायनिन बहुत अधिक होता है। सेब में एपिकेटेचिन प्रमुख केटेचिन पॉलीफेनोल्स होता है। सेब के बीज में मुख्य पॉलीफेनोल्स फ्लोरिड्जिन ( 98% ) होता है। सेब के गूदे में कुल पॉलीफेनोल्स 1-7 ग्राम प्रति किलो हिसाब से होते हैं। विदित रहे कि सेब के छिलके में प्रकाश संश्लेषण क्रिया करने वाली कोशिकाएं सूर्य की V-B किरणों के प्रति बहुत संवेदनशील होती है और छिलके में विद्यमान अधिकांश पॉलीफेनोल्स UV-B किरणों को सोख लेती हैं। इस तरह पॉलीफेनोल्स सेब के लिए प्राकृतिक सनस्क्रीन की तरह काम करते हैं।
आपने देखा होगा कि सेब के टूटने या कटने से उसका गूदा भूरा होने लगता है और खराब हो जाता है। शोधकर्ता इसका कारण पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज एंजाइम को मानते हैं, जो सेब के टूटने या फटने पर पॉलीफेनोल्स का ऑक्सीडाइज करने लगते हैं। या यूँ समझ लीजिये कि सेब में जंग लगने लगता है, जिसके फलस्वरूप गूदा भूरा और काला पडऩे लगता है। भूरा और खराब होने पर सेब इथाइलीन गैस भी छोडऩे लगता है, जो दूसरे सेबों को भी खराब करता है। आपने कहावत सुनी होगी कि एक सड़ा हुआ सेब पूरी डलिया के सेब खराब कर देता है।  इसलिए सेब की पेकिंग और परिवहन में बहुत एहतिहात रखनी पड़ती है। और आजकल सेबों पर वेक्स पॉलिशिंग भी इसीलिए की जाती है। 
 ऑसम एंटीऑक्सीडेंट: सेब के अधिकांश पॉलीफेनोल्स शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट माने गये हैं। ये खासतौर पर कोशिका-भित्ति के फैट्स को ऑक्सीडाइज होने से बचाते हैं। यह गुण हृदय और रक्त-परिवहन संस्थान के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि रक्त-वाहिकाओं की आंतरिक सतह की कोशिकाओं में फैट्स के ऑक्सीडाइज होने से वाहिकाओं के बंद होने  और अन्य विकारों का जोखिम रहता है। और ये पॉलीफेनोल्स फैट्स को  ऑक्सीडाइज होने से बचाते हैं और सेब को हृदय हितैषी का दर्जा दिलाते हैं।
सेब के शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट अस्थमा और फेफड़े के कैसर का खतरा भी कम करते हैं। पॉलीफेनोल्स के साथ सेब में 8 मिलीग्राम विटामिन-सी भी होता है। यह मात्रा बहुत सामान्य है, लेकिन फिर भी बहुत खास है क्योंकि विटामिन-सी के पुनर्चक्रण के लिए फ्लेवोनॉयड्स बहुत जरूरी होते हैं। और सेब में ये फ्लेवोनॉयड्स भरपूर होते हैं।
डायबिटीज डेमेजर: पिछले कुछ वर्षों में हुई शोध के अनुसार डायबिटीज के नियंत्रण में सेब का महत्व अचानक बढ़ गया है। सेब में पॉलीफेनोल्स कई स्तर पर शर्करा के पाचन और अवशोषण को प्रभावित करते हैं और रक्त में ग्लूकोज के स्तर को बखूबी नियंत्रित रखने की कोशीश करते हैं। ये जादुई पॉलीफेनोल्स इस तरह कार्य करते हैं।
- ये शर्करा के पाचन में गतिरोध पैदा करते हैं। सेब में विद्यमान क्युअरसेटिन और अन्य फ्लोवोनॉयड शर्करा को पचाने वाले एंजाइम्स अल्फा-अमाइलेज और अल्फा-ग्लूकोसाइडेज को बाधित करते हैं। ये एंजाइम्स जटिल शर्करा का विघटन करके सरल कार्ब ग्लूकोज में परिवर्तित करते हैं। जब ये एंजाइम्स बाधित होते हैं, तो स्वाभाविक है कि रक्त में ग्लूकोज का स्तर नहीं बढ़ेगा।
- पॉलीफेनोल्स आंत में ग्लूकोज का अवशोषण की गति को कम करते हैं, जिससे रक्त में ग्लूकोज धीरे-धीरे बढ़ती है।
- ये पेनक्रियास के बीटा सेल्स को इंसुलिन बनाने के लिए प्रेरित करते हैं, और इंसुलिन के रिसेप्टर्स को उत्साहित करते हैं ताकि इंसुलिन ग्लूकोज को कोशिका में ज्वलन और ऊर्जा बनाने के लिए भेजता है। रक्त-प्रवाह से ग्लूकोज को कोशिका में भेजने के लिए कोशिका के इन्सुलिन रिसेप्टर्स का इन्सुलिन के चिपकना और कोशिका के मधु-द्वार को खोलना जरूरी होता है। आप यूँ समझें कि इन्सुलिन हार्मोन मधु-द्वार को खोलने की कुंजी का कार्य करता है। इस तरह सेब में विद्यमान पॉलीफेनोल्स रक्त शर्करा के नियंत्रण में मदद करते हैं।
हार्ट हीलर: सेब में जल-घुलनशील पेक्टिन और पॉलीफेनोल्स का अनूठा मिश्रण इसे हृदय के लिए हितकारी बनाता है। नियमित सेब का सेवन करने से कॉलेस्टेरोल और बुरा एल.डी.एल. कॉलेस्टेरोल कम होने लगता है। रक्त और रक्त-वाहिका की आंतरिक सतह की कोशिका-भित्ति में फैट्स का ऑक्सीडेशन कम होना कई हृदय रोगों से बचाव की मुख्य कड़ी है।
सेब में विद्यमान क्युअरसेटिन के प्रबल प्रदाहरोधी गुण भी हृदय रोग से बचाव में खास स्थान रखते हैं। इसीलिए नियमित सेब खाने से शरीर में सी.आर.पी. (जो शरीर में इन्फ्लेमेशन का एक मार्कर है) कम होता है और हृदय रोग का जोखिम कम करता है। इस सर्वव्याप्त और स्वादिष्ट फल में प्रकृति ने हमें कितने हृदय-हितैषी पोषक तत्व एक साथ दिये हैं। पोषक तत्वों का ऐसा विचित्र संगम बहुत कम देखने को मिलता है। शायद इसीलिए हमारे बुद्धिमान पूर्वज कहते आये हैं कि रोज एक सेब खाने से आप चिकित्सक से दूर रहेंगे।  मैं तो यही कहूँगा कि
जो नित प्राणायाम करत है और सेब फल खाये
कबहु न मिलिहै  बैदराज से  रोग न  कोई  होये
कैंसर किलर: हालांकि सेब कई तरह के (आंत और स्तन कैंसर) कैंसर में लाभदायक माना जाता है, लेकिन फेफड़े को कैंसर में यह विशेष महत्वपूर्ण है। सेब निश्चित रूप से फेफड़े के कैंसर का जोखिम कम करता है। इसके लिए पॉलीफेनोल्स के एंटीऑक्सीडेंट्स और प्रदाहरोधी गुण जिम्मेदार माने गये हैं। शोधकर्ताओं ने हजारों लोगों पर शोध किया है। लोगों को दो श्रेणियों में बांटा गया, एक श्रेणी को सेब को छोड़ कर अन्य फल और सब्जियां खिलाई गई तो दूसरी श्रेणी को सिर्फ सेब खिलाये गये। शोधकर्ताओं ने पाया कि सेब खाने वाली श्रेणी में फेफड़े के कैंसर का जोखिम आश्चर्यजनक रूप से कम हुआ था। शोधकर्ता इन नतीजों का स्पष्टीकरण नहीं ढूँढ़ पा रहे हैं और मानते हैं कि अभी और शोध की आवश्यकता है।
अन्य: नई शोध से कुछ ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि सेब अस्थमा का जोखिम भी बहुत कम कर देता है। इसके लिए भी पॉलीफेनोल्स के एंटीऑक्सीडेंट्स और प्रदाहरोधी गुण जिम्मेदार माने गये हैं। लेकिन शोधकर्ता मानते हैं कि सेब में पॉलीफेनोल्स के अलावा भी कोई अन्य ऐसा तत्व भी है जो अस्थमा के लिए फायदेमंद है। सेब अल्झाइमर और रेटीना के मेक्यूलर डीजनरेशन में भी गुणकारी माना गया है। फास्फोरस और लौह प्रधान होने से यह मस्तिष्क और शरीर की मांसपेशियों में शक्ति का नव संचार कर इन्हें सुदृढ़ बनाता है। अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि सेब खाने से बड़ी आंत में क्लोस्ट्रिडियेल और बेक्टिरियोड्स नामक जीवाणु की संख्या  काफी कम हो जाती है। इससे बड़ी आंत का चयापचय में भी बदलाव आता है और कई फायदे होते हैं। 
वो तीन सेब जिन्होंने बदल दी दुनिया: तीन सेबों ने इस दुनिया का स्वरूप बदल कर रख दिया है। यूनानी पौराणिक कथाओं के अनुसार पहला सेब तो ईव ने आदम को खिलाया, जो इस धरा पर मानव संसार का कारण बना। यदि आदम और ईव ने ईडन गार्डन में  वह वर्जित सेब नहीं खाया होता तो शायद आज मेरा और आपका अस्तित्व भी नहीं होता। दूसरा सेब सर आइजक न्यूटन के सिर पर गिरा जिससे उनका सिर घूमने लगा और उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत बनाया, जिसके कारण विज्ञान ने इतनी तरक्की की और चांद पर भी फतह हासिल की। तीसरा एप्पल स्टीव जोब्स की कल्पना में पैदा हुआ, जिसकी वजह से आज आप और हम मेक कम्प्यूटर, आईफोन, आईपेड, आईट्यून और आईपोड इस्तेमाल कर रहे हैं।
लेखक अपने बारे में:  मैंने एम.बी.बी.एस. मार्च 1973 में आर.एन.टी. मेडीकल कालेज, उदयपुर से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है। 1884 में ऑक्सफोर्ड  विश्वविद्यालय, इंग्लैन्ड से एम.आर.एस.एच. की उपाधि प्राप्त की। मार्च 1976 से अक्टूबर 2010 तक राजकीय सेवा में चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्य किया।
अलसी चेतना यात्रा नामक संस्था की स्थापना की।  पिछले पांच वर्षो से आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक, चमत्कारी और दिव्य भोजन अलसी की जागरूकता के लिए कार्य कर रहा हूँ। कई वर्कशाप और सेमीनार आयोजित किये। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अलसी और अन्य विषयों पर लेख प्रकाशित हुए। रेडियो व टेलीविजन पर कार्य कर प्रस्तुत किये। संस्था की ओर से मुफ्त वितरण हेतु अलसी महिमा नामक पुस्तक प्रकाशित की।  2010 में अंत में अलसी का अलख जगाने के उदेश्य से अलसी-रथ द्वारा चेतना- यात्राएं निकाली, जिनमें राजस्थान और मध्य प्रदेश में सभी बड़े-बड़े शहरों में प्रोग्राम, सेमीनार और पत्रकार वार्ताएं आयोजित की।  इन यात्राओं में हमने 7000 किलोमीटर का सफर अलसी-रथ पर किया। सन् 1981 से 1993 तक विदेश में रहा। लीबिया और ब्रिटेन में कार्य किया और यूरोप, माल्टा, मिस्र, पाकिस्तान,  कुवैत और दुबई की यात्राएं की। 
                संपर्क: वैभव हॉस्पीटल और रिसर्च इन्स्टिट्यूट, 7-बी-43, महावीर नगर तृतीय, कोटा राजस्थान,
Email- dropvermaji@gmail.com, http://flaxindia.blogspot.in/