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Jul 25, 2012

ब्लाग बुलेटिन से : कोलंबस होना अच्छा लगता है...


उदंती में हमने जो नयी श्रृंखला की शुरूआत की है उसके अंतर्गत निरंतर हम किसी एक ब्लॉग के बारे में आपको जानकारी दे रहे हैं। इस 'एकल ब्लॉग चर्चा' में ब्लॉग की शुरुआत से लेकर अब तक की सभी पोस्टों के आधार पर उस ब्लॉग और ब्लॉगर का परिचय रश्मि प्रभा जी अपने ही अंदाज में दे रही हैं। आशा है आपको हमारा यह प्रयास पसंद आएगा। तो आज मिलिए...
राज सिलस्वल के ब्लॉग RajkiBaat से।                                         - संपादक



कोलंबस की खोज और मैं.... उसने देश खोजा, मैं छुपे कवियों की तलाश में गूगल के टापू पर डेरा डालती हूँ, एहसासों के समंदर में आँख लगाकर अर्जुन की मानिंद बैठ कोलंबस होना मुझे अच्छा लगता है। आज की खोज हैं- राज सिलस्वल।
http://rajkibaatpatekibaat.blogspot.in/! 
इनका कहना है कि 'मेरा मानना है कि अच्छी कविता भी बाजार की मांग और आपूर्ति के नियमों का निर्वाह करती है। यह एक कमोडिटी है और एक सुंदर कमोडिटी है और मैं भोगवाद की कविता का समर्थन करता हूँ। लगभग 15 वर्ष पहले लिखा और फिर लिखना बंद कर दिया। लगा की कोई फायदा नहीं है। वर्ष 2011 से लगा कि फायदा है तो मन से लिख रहा हूँ। अपने दोस्तों का और गूगल हिन्दी लिप्यंतरण का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे दुबारा लिखने के लिए प्रेरित किया। मेरे अच्छे और बुरे लेखन के लिए ये दोनों भी जिम्मेदार है!'
2011 के नवम्बर महीने से इन्होंने लिखना शुरू किया- इनके ब्लॉग भ्रमण में मैंने पाया कि कहीं गीतों से पुट हैं तो कहीं अबूझे बोल से ख्याल, एक रिदम!
ब्लॉग पर इनका पहला कदम RajkiBaat: Thank you Note to Gulzar Saab
उदंड कल्पनाओं की कल्पना लिए राज जी की कलम कुछ यूँ हमसे मिलती है- उदण्ड कल्पनाएँ
'उदण्ड कल्पनाओं ने
यथार्थ के सीमाओं
का उल्लंघन किया है...और
चली गयी हैं छूने
अनंत के अंत को'
कवि पन्त ने कवि को परिभाषित किया, कवि राज ने कविता को... कवि पन्त ने कहा- 'वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान'
कवि राज ने कहा
'ह्रदय से छलककर
कागज पर बिखरना
कविता है...
शब्दों का
छंदों मैं बंधकर
ह्रदय में उतरना
कविता है...
भावनाओं का
ह्रदयबन्ध तोड़कर
स्वछंद नरतन
कविता है...
शब्द गंगा का
उमड़ घुमड़ कर
अभिव्यक्तियों को
ह्रदय से बहा ले जाना
कविता है...
स्वछंद चिंतन, मनन, अभिकल्पन, परिकल्पन
या फिर
ह्रदय का ह्रदय से ह्रदय तक गमन
कविता है' कविता क्या है ?
दिसम्बर में इन्होंने कई एक रचनाएँ लिखीं (2011), तात्पर्य यह कि नवम्बर से अधिक... रचनाएँ तो बेशक सभी अच्छी हैं, पर सब मैं ही उठाकर ले आई तो इनके ब्लॉग भ्रमण के दरम्यान आपके लिए कुछ नया नहीं रह जायेगा! वैसे यह कहना भी गलत है, रचनाएँ हमेशा नवीन रहती हैं और हर बार समयानुसार नए अर्थ दे जाती हैं। उदाहरण के तौर पर कवि दिनकर की रश्मिरथी... जब भी पढ़ा जाए एक नया जोश होता है और कृष्ण
अपने करीब लगते हैं ।
चलिए हम दिसम्बर की शाख से इनकी कुछ रचनाएँ लेते हैं -
की मुझको मुक्त कर जाओ
'कि तुम हो शून्य, या कोई हकीकत
मुझको बतलाओ
कि मुझको मुक्त कर जाओ...'
यथार्थ और परिकल्पनाएं
'तुम्हारी चाह में
जब उम्र भरती है उड़ान
तो पहुँच जाता है मन
अभिव्यक्ति के उस क्षितिज पर
जहाँ भाषाएँ गूंगी हैं
और बोलती हैं केवल भावनाएं
अपर्याप्त शब्द
'शब्दों में बंधी
लाश को देखो
मरणासन कल्पना
में जीवन का
अंश ढूँढो'...
समय कहाँ रुकता है, दिन -रात, महीने, साल सब बदलते हैं तो आ गया नया साल यानि 2012, दे गया कुछ और सौगात हमारी साहित्यिक जिज्ञासा को -
दिग दिग दिगंत
का से कहूं में जिया रे पिहरवा
...और अब तक
सुनो प्रिया ...
'सुनो प्रिया ...
वो पिघल गया है, जो बर्फ का पहाड़
तुम मेरे सीने पर छोड़ गयी थी
दरिया बनाया है मैंने उसका
आग तो थी ही, बुझने नहीं दी
आखिर बर्फ के इक सर्द ढेले में
कितना पानी होगा?
समय लगता है पिघलने में
दरिया बनने में
कोशिश करना
अन्दर से पिघलने की
दरिया बनने और
अपने बहाव में बहने का
अलग ही मजा है
मठाधीशों से हारने का
तो बहाना था तुम्हारा
खुद से हारने को
दूसरों की जीत नहीं कहते
याद है
'गोन विथ द विंड'
पहले मैंने चखी थी
और फिर तुमने पढ़ी थी?
टांग दिए थे तुमने अपने बुत
उन तटस्थ स्तंभों पर
जो सदियों वहीं खड़े हैं
तटस्थ कहीं के! दम्भी स्तंभ!!
और हाँ तुम तथ्यों के
सत्य की प्रवचना करती थी ना?
में आज भी संवेदनाओं का
स्पंदन हूँ
शायद इसीलिए
हर बर्फीले ठोसपन को
दरिया बना देता हूँ
तुम्हारे नल के मीठे पानी में
जो आतिश है
वो मेरे चुम्बन की है
पी के देखना
वही दरिया है ये !!
आप इनके ब्लॉग तक जाएँ... मेरी पसंद के चनाब से एहसासों का एक घूंट भरें!
संपर्क:  brahma emerald county, B- 2, FLAT- 901, NIBM road, Pune- 411048
मो. 09371022446
http://lifeteacheseverything.blogspot.in
Email- rasprabha@gmail.com

2 comments:

निर्मला कपिला said...

उदंती पर शायद पहली बार आयी हूँ बहुत अच्छा प्रयास है। रश्मि जी को बधाई।

ANULATA RAJ NAIR said...

दी आपकी नज़र से राज जी को देखना अच्छा लगा...
वरना यूँ तो नियम से पढ़ती हूँ उनकी हर रचना....
उनके लेखन का अंदाज़ एकदम जुदा है...
बहुत पसंद है मुझे उनकी कवितायें.

शुभकामनाएं
सादर
अनु