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Feb 23, 2012

क्या रोज छिटकती है चाँदनी?

- प्राण शर्मा
1
राजा किसी को, रंक किसी को बना दिया
संसार तुमने राम जी कैसा रचा दिया

ऐसा लगा कि जैसे अंगूठा दिखा दिया
शोहरत मिली तो उसने सभी को भुला दिया

चतुराई उसकी कहिये या उसकी बहादुरी
मुझको तो तारा दिन में भी उसने दिखा दिया

कितना है बेरहम वो सभी की निगाहों में
बैठे- बिठाए बच्चों को जिसने रुला दिया

वो शेख चिल्ली जैसे लिए जा रहा था ख़्वाब
अच्छा किया जो आपने उसको जगा दिया

हँसने लगा वो मुद्दतों के बाद राम जी
हैरां हूँ किसने उसका मुकद्दर जगा दिया

ऐसा नज़र से 'प्राण' गिराए नहीं कोई
जैसे नज़ऱ से उसने सभी को गिरा दिया
2
चेहरे पे आपके हो भला क्यों न रोशनी
सुनते हैं पाँचों उँगलियाँ हैं घी में आपकी

हर चीज़ हाथ आई है माना कि आप के
अपना ही साया हाथ में आया है क्या कभी

कुछ तो खय़ाल कीजिये अपने घरों का आप
जैसे खय़ाल करते हैं सरहद पे संतरी

हर चीज़ व्यर्थ जान के कूड़े में फेंक मत
हर चीज़ का महत्त्व है क्या फूल क्या कली

माना कि होनहार है हर बात में मगर
दुनिया के सभी इल्मों में बच्चा है आदमी

इक से किसी के दिन नहीं होते हैं साहिबो
क्या एक जैसी रोज़ छिटकती है चांदनी

जानेंगे तुझ को लोग सभी कल को देखना
हर शख्स पहले होता है ए 'प्राण' अजनबी

लेखक के बारे में- जन्म-13 जून 1937, वजीराबाद (पाकिस्तान) प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में, पंजाब विश्वविद्यालय से एम. ए., बी.एड.। छोटी आयु से ही लेखन कार्य। मुंबई में फिल्मी दुनिया का भी तजुर्बा । 1955 से गज़ल और कवितायें लिखते रहे हैं। 1965 से यू.के. में प्रवास । उनकी रचनाएँ पंजाब के दैनिक पत्र, 'वीर अर्जुन' एवं 'हिन्दी मिलाप', ज्ञानपीठ की पत्रिका 'नया ज्ञानोदय' जैसी अनेक उच्चकोटि की पत्रिकाओं और अंतरजाल के विभिन्न वेब्स में प्रकाशित होती रहती हैं। वे देश- विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं। प्रकाशित रचनाएँ- गज़ल कहता हूँ , सुराही (मुक्तक-संग्रह)। संपर्क: कवेंट्री, यू.के. Email:prans69@gmail.com

7 comments:

vandana gupta said...

प्राण शर्मा जी की गज़लें तो अनमोल होती हैं जीवन के यथार्थ का बोध कराने के साथ सार्थक संदेश भी देती हैं।

Udan Tashtari said...

प्राण जी को पढ़ना सदैव ही एक सुखद अनुभव रहा है/ अपने आस पास की बातों इतने सादे लहजे में गज़ल में उतारना उन्हीं के बस की बात है...आभार उनकी यह दोनों बेहतरीन उम्दा गज़लें पढ़वाने का.

सुभाष नीरव said...

प्राण जी की ये ग़ज़लें बहुत उम्दा लगीं… कई शे'र तो न भूलने वाले शे'र हैं।

दिगम्बर नासवा said...

Bahut hi lajawaab gazlen hain dono Pran ji ki ...
Kuch to khyaal kijiye apne gharon ka aap ...
subhaan alla ... gazab ka sher hai ...

vijay kumar sappatti said...

प्राण जी की गज़ले , जिंदगी की सच्ची दास्तावेज होती है .. उनकी गज़लों में कल,आज और कल का मिश्रण होता है , जो की भावपूर्ण शब्दों के द्वारा दिल में उतर जाता है .

दोनों ही गज़ले बहुत ही सच्ची है . दूसरी गज़ल बहुत करीब और अपनी सी लगी ,

उदंती को और प्राण शर्मा जी को ढेर सी बधाई .

विजय

ashok andrey said...

priya bhai Pran Shama jee aapki gajlon se gujarna ek sukhad ehsaas se gujarne jaisa hota hai,itni umda gajlon ko padvane ke liye aabhar.

सुधाकल्प said...

बहुत ही सहजता ,सरलता लिए यथार्थ को स्पष्ट किया है ।