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Feb 28, 2011

असुरक्षित होती औरत

वर्तमान में हर तरफ बढ़ते भ्रष्टाचार और मंहगाई के समाचार के बाद जो मुद्दा सुर्खियों में है वह महिलाओं के प्रति क्रूर अत्याचार। कई वर्षों से महिला अत्याचार के लगातार बढ़ते ग्राफ की ओर ध्यान अब तक किसी ने नहीं दिया था लेकिन पिछले महीने एक के बाद एक महिला पर हो रहे अत्याचार के इतने अधिक मामले आए हैं, वह भी सिर्फ उत्तर प्रदेश से कि प्रदेश की शासन- व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। पहला मामला बांदा में एक दलित लड़की के साथ बसपा विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी द्वारा बलात्कार और फिर उल्टे उसी पर चोरी का इल्जाम लगाकर उसे पुलिस की सहायता से जेल भेजने का, इसके बाद इटावा की सोनम, आजमगढ़ की शमीना अख्तर, फिरोजाबाद की कक्षा पांच की बच्ची, लखनऊ में चिनहट की आरती और फिर जौनपुर की एक स्कूल प्रिंसिपल द्वारा स्कूल प्रबंधक के यौन उत्पीडऩ से तंग आकर अपने को आग के हवाले करने का मामला। और फिर फतेहपुर जिले के उदरौली गांव में चार कामांध युवकों के कुकृत्य ने तो कानून व्यवस्था की धज्जियां ही उड़ा डाली। लड़कों ने शौच के लिए खेतों पर गयी एक स्कूली छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म करने का प्रयास किया औरलड़की के विरोध करने पर कुल्हाड़ी से जान लेवा हमला कर उसे बुरी तरह जख्मी कर दिया। अफसोस दरिंदों की दरिंदगी का यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
ये सब वे घटनाएं हैं जो सामने आ गई हैं ना जाने अभी कितनी कितनी महिलाएं हैं जो अपने आप को दरिंदों से बचाने के लिए गुपचुप खुद को मौत के हवाले कर रही होंगी या जुबान पर ताला लगाए दर्द के आंसू पी रहीं होंगी। ... एक ओर तो हम लड़कियों और महिलाओं के उत्थान और विकास की बात करते हैं। उन्हें बढ़ावा देने, उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने, हर क्षेत्र में बराबरी का अधिकार दिलाने, बेहतर शिक्षा देने के लिए नित नई- नई योजनाएं बनाते हैं। वहीं दूसरी ओर उन्हीं लड़कियों का राह चलना, कहीं भी अकेले आना- जाना दूभर हो गया है। यह कैसा बराबरी का अधिकार है कि वे अपने ही गांव अपने ही शहर में सुरक्षित नहीं हैं।
यद्यपि हालात पूरे देश में खराब हैं पर आंकड़े गवाह हैं कि महिला अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश से आ रहे हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009-10 के प्रथम आठ माह के उपलब्ध आंकड़ों में महिलाओं के प्रति अपराध को लेकर उत्तर प्रदेश में 6000 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं। इस दौरान देश भर में कुल 11,004 मामलों में से अकेले उत्तर प्रदेश से 6302 मामले हैं। आयोग के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्रतिदिन कम से कम 17 महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले दर्ज होते हैं जिनमें बलात्कार, छेडख़ानी, प्रताडऩा और दहेज हत्या जैसे मामले शामिल हैं। आंकड़ें बताते हैं कि इस प्रदेश में महिलाओं का जीवन कितना असुरक्षित हो गया है। महिला अत्याचार की यह संख्या 2005 से 2010 तक तक आते आते5000 से बढ़कर 8500 तक पहुंच गई है।
अपने को दलितों की मसीहा मानने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के राज में यह दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ते ही जा रहा है। जिस प्रदेश में वहशी दरिंदे कानून को जेब में रखकर घूम रहे हों जहां रक्षक ही भक्षक बन गए हों उस माया राज के बारे में क्या कहना- वे एक ऐसे प्रदेश की मुख्यमंत्री हैं जहां खुलेआम महिलाओं का चीरहरण हो रहा है। इतना ही नहीं जिस प्रदेश में देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी पर सवालिया निशान लग जाए और राजनीतिक निहित स्वार्थों की रक्षा करने का आरोप हो तब मामला और भी संगीन बन जाता है। यह दुखद स्थिति है कि हमारी सरकारें जिनका पहला कर्तव्य जनता की सुरक्षा है, उनकी सुविधाओं का ध्यान रखना है, वह अपराधियों की ही संरक्षक बन गई है। अपराधी आंखों के सामने है पर बजाए उसे सजा दिलाने के वह उसे बचाने में लगी हुई है। इन सबको देखते हुए यही कहना पड़ेगा कि अब राजनीति का अपराधीकरण नहीं बल्कि अपराध का ही राजनीतिकरण हो गया है।
महिला अत्याचार के इस तरह के मामलों में सही और समय पर न्याय न हो पाना भी हमारे देश का दुर्भाग्य है। यदि वह महिला गरीब और राजनीतिक पहुंच वाली न हुई तब तो उसके लिए यह और भी मुश्किल है। कानून में बलात्कार पीडि़त स्त्री का नाम सार्वजनिक किए जाने की मनाही है, पर कौन पालन कर रहा है इस कानून का। इस तरह के मामलों को मीडिया सनसनीखेज खबर बनाकर परोसती है उनके लिए अपने चैनल का टीआरपी बढ़ाना किसी महिला के इज्जत उछाले जाने से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। बलात्कार के बाद पीडि़ता की आत्मा लहूलुहान हो चुकी होती है लेकिन उसके बाद मीडिया और कानून ऐसे- ऐसे घाव करती है कि उसे लगता है- अच्छा होता वह चुप रह कर अकेले ही यह दर्द सहती। दुख की बात यह कि अंधिकांश मामलों में वह सहती भी है। यह तो सर्वविदित ही है कि सबसे अधिक छुपाया जाने वाला कोई अपराध यदि है तो वह बलात्कार ही है। बलात्कार के अधिकांश मामले परिवार और समाज की इज्जत के नाम पर दबा दिए जाते हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि इन तरह के अत्याचार पर रोक कैसे लगे। सर्वप्रथम तो स्वयं औरत को चुप्पी तोड़ते हुए अपनी लड़ाई लडऩी होगी। इसकी एक छोटी सी शुरूआत हाल ही में उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की लड़कियों ने पहली बार छात्रसंघ चुनाव लड़कर कर दी है। भले ही वे चुनाव हार गईं पर उन्होंने पहल तो की और यह जता दिया कि उन्हें भी इस क्षेत्र में उतरने का अधिकार है।
दूसरे कानून और व्यवस्था में आवश्यक जरुरी बदलाव के साथ लड़कियों को ऐसी शिक्षा मिले जिससे वे आत्मनिर्भर बन कर निडरता से अत्याचार का सामना करने लायक बन सकें और समाज में घूम रहे उन दरिंदों के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की हिम्मत ला सकें। न्याय शीघ्र मिल सके इसके लिये न्याय प्रक्रिया में समुचित परिवर्तन भी आवश्यक है। और इन सबसे ऊपर उन राजनीतिज्ञों को सत्ता में आने से रोका जाए जिनपर पहले ही अपराधिक मुकदमें चल रहे हों, आखिर हमारी न्याय व्यवस्था ऐसे अपराधियों को चुनाव लडऩे की इजाजत किस आधार पर दे देती है? और अंत में यह भी कि महिला अत्याचार की आड़ में हमारे नेता राजनीति की रोटी सेंकने से बाज आएं।


- रत्ना वर्मा

4 comments:

सुरेश यादव said...

अनकही के अंतर्गत डा.रत्ना वर्मा ने महिलाओं की सुरक्षा का ज्वलंत प्रश्न उठाया है .बहुत महत्वपूर्ण है .यह गंभीर समस्या है और इसकी जड़ें सामजिक ,आर्थिक एवं राजनितिक व्यवस्था में निहित हैं .'बलात 'का मतलब ज़बरदस्ती होता है और इस व्यवस्था में कमजोर इसका शिकार होता है .महिला चूँकि मासूम है अतः क्रूरता की अधिक शिकार होती है .यह क्रूरता या अन्याय पूर्ण स्थिति बहुत सारे स्तरों पर व्याप्त है . उत्तर प्रदेश की स्थिति बहुत ख़राब है जहाँ महिलाएं देश में सर्वाधिक और शर्मनाक स्थिति तक बलात्कार की शिकार होती हैं ----क्या कभी सोचा है कि लड़कियों का सबसे अधिक सम्मान इसी उत्तर प्रदेश में होता है ,बड़ी उम्र के बड़े भाई , चाचा ,ताऊ और पिता भी छोटी छोटो लड़कियों के पैर बड़े आदर से छूते हैं और साक्षात देवी की तरह ..खड़ी होती हैं लड़कियां .इसके विपरीत जहाँ लड़कियां बड़ों के पैर छूती हैं ,बड़ों का सम्मान करती हैं उत्तर प्रदेश के मुकाबले बलात्कार की कम शिकार होती हैं .ऐसा लगता है उत्तर प्रदेश में यह बनावटी सम्मान है .मेरा मानना है कि आर्थक ,सामजिक बराबरी पर कड़ी होकर महिलाएं इसी शाशन व्यवस्था के भीतर अपनी रक्षा और अपना सम्मान प्राप्त कर सकेंगीं .रत्ना जी को इस सार्थक प्रश्न की गहन चिंता के लिए हार्दिक बधाई .धन्यवाद .

सुरेश यादव said...

अनकही के अंतर्गत डा.रत्ना वर्मा ने महिलाओं की सुरक्षा का ज्वलंत प्रश्न उठाया है .बहुत महत्वपूर्ण है .यह गंभीर समस्या है और इसकी जड़ें सामजिक ,आर्थिक एवं राजनितिक व्यवस्था में निहित हैं .'बलात 'का मतलब ज़बरदस्ती होता है और इस व्यवस्था में कमजोर इसका शिकार होता है .महिला चूँकि मासूम है अतः क्रूरता की अधिक शिकार होती है .यह क्रूरता या अन्याय पूर्ण स्थिति बहुत सारे स्तरों पर व्याप्त है . उत्तर प्रदेश की स्थिति बहुत ख़राब है जहाँ महिलाएं देश में सर्वाधिक और शर्मनाक स्थिति तक बलात्कार की शिकार होती हैं ----क्या कभी सोचा है कि लड़कियों का सबसे अधिक सम्मान इसी उत्तर प्रदेश में होता है ,बड़ी उम्र के बड़े भाई , चाचा ,ताऊ और पिता भी छोटी छोटो लड़कियों के पैर बड़े आदर से छूते हैं और साक्षात देवी की तरह ..खड़ी होती हैं लड़कियां .इसके विपरीत जहाँ लड़कियां बड़ों के पैर छूती हैं ,बड़ों का सम्मान करती हैं उत्तर प्रदेश के मुकाबले बलात्कार की कम शिकार होती हैं .ऐसा लगता है उत्तर प्रदेश में यह बनावटी सम्मान है .मेरा मानना है कि आर्थक ,सामजिक बराबरी पर खड़ी होकर महिलाएं इसी शासन व्यवस्था के भीतर अपनी रक्षा और अपना सम्मान प्राप्त कर सकेंगीं .रत्ना जी को इस सार्थक प्रश्न की गहन चिंता के लिए हार्दिक बधाई .धन्यवाद .

D.P. Mishra said...

VERY-VERY NICE...
TAREF KE LAYAK VISHAYA UTHAYA.
LEKHANE KE DHAR ESE TARH PAINE RAKHE.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

आज की राजनीति पर जितना कम कहा जाए उतना अच्छा। आपके सम्पादकीय में उत्तर प्रदेश के हालात का जायज़ा लिया गया है जहां भ्रष्टाचार, बलात्कार आदि पर चिंता व्यक्त की। यह स्थिति लगभग सारे देश में व्याप्त है क्योंकि नेता खुद इन मामलों में गिरफ़्तार भी किए गए है। जब बाहूबली और गुंडे नेता बन गए तो कानून का डर किसे हो। यह तो वही कहावत हो गई- सैंया भये कोतवाल तो अब डर किस का :(