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Jul 11, 2010

प्रेरक

गाँधी जी ने थोरौ से पाया सदगी भरे जीवन का फलसफा

थोरौ ने लगभग 250 वर्ष पूर्व भविष्य के भागदौड़ भरे जीवन की कल्पना करते हुए जीवन को साधारण बनाने और प्रकृति के करीब रखने की जरूरत पर बल दिया था। उन्होंने लंबे समय तक प्रकृति के करीब रह कर अहिंसा, जीवन की सादगी और विचारों की शुद्धता संबंधित कई किताबें लिखीं, जिनमें 'वाल्डेन' और 'ऑन सिविल ओबीडियंस' सबसे ज्यादा चर्चित है।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक महात्मा गाँधी के जीवन और विचारों पर जिन चंद लोगों का जबरदस्त प्रभाव था उनमें अमेरिकी लेखक एवं विचारक थोरौ भी शामिल थे। उनकी कृतियों के कारण बापू को सादगी भरे जीवन का फलसफा मिला।
महात्मा गाँधी ने 1902 में जोहांसबर्ग में अमेरिकी पत्रकार वैब मिलर से कहा था कि दक्षिण अफ्रीका में मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में काम करने के दौरान उन्होंने अमेरिकी लेखक और विचारक हेनरी डेविड थोरौ की 'वाल्डेन' को पढ़ा जिसके बाद उन्हें उनके सादा जीवन के विचारों से बहुत प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा था कि वह भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के दौरान इनका पालन करेंगे और उनके जो साथी इस काम में सहयोग कर रहे हैं, उन्हें भी थोरौ को पढऩे को कहेंगे।
यही कारण है कि थोरौ के जन्मदिवस 12 जुलाई पर पूरी दुनिया में 'सिंपलिसिटी डे' (सादगी दिवस) मनाया जाता है।
महात्मा गाँधी से जुड़ी रहीं स्वतंत्रता सेनानी रुक्मिणी दास के अनुसार महात्मा गाँधी देश-दुनिया के उन सभी लेखकों को पढ़ते थे, जिनके विचार उनसे मिलते-जुलते थे।
रुक्मिणी ने बताया कि उनके पास पश्चिमी लेखकों का बहुत बड़ा संग्रह था, जिनसे वे जीवन से जुड़ी छोटी-बड़ी चीजों की प्रेरणा लेते थे। थोरौ के आदर्शो पर चलने वालों में महात्मा गांधी के अलावा मार्टिन लूथर किंग जूनियर का भी नाम है। मार्टिन ने अपनी आत्मकथा में इस बात का उल्लेख किया है कि उन्हें अहिंसा के रास्ते से विरोध करने का विचार 1944 में थोरौ को पढऩे के बाद आया।
थोरौ ने लगभग 250 वर्ष पूर्व भविष्य के भागदौड़ भरे जीवन की कल्पना करते हुए जीवन को साधारण बनाने और प्रकृति के करीब रखने की जरूरत पर बल दिया था। उन्होंने लंबे समय तक प्रकृति के करीब रह कर अहिंसा, जीवन की सादगी और विचारों की शुद्धता संबंधित कई किताबें लिखीं, जिनमें 'वाल्डेन' और 'ऑन सिविल ओबीडियंस' सबसे ज्यादा चर्चित है।
थोरौ अमेरिका के पहले ऐसे विचारक थे, जिन्होंने अमेरिका में 'सादा जीवन, उच्च विचार' की कल्पना को देशवासियों के बीच पहुंचाने का प्रयास किया।
अपने पूरे जीवनकाल के दौरान उन्होंने पश्चिमी देशों के निवासियों को विलासिता के साधनों, मांसाहार और आधुनिकता से परे होकर विचारों की शुद्धता और जीवन को साधारण बनाने के लिए प्रेरित किया। थोरौ के आदर्शों की बदौलत अमेरिका में आज भी बड़ी संख्या में लोग 12 जुलाई के दिन मांसाहार और मशीनी जीवन त्याग कर प्रकृति के करीब होने का अहसास करते हैं।

1 comment:

कडुवासच said...

... bhaavpoorn abhivyakti !!!