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Jun 5, 2010

धरती माता क्रोधित है

धरती माता क्रोधित है
डॉ. रत्ना वर्मा 

जैसा कि मालूम ही है कि यह वर्ष 2010 आजतक के जाने हुए इतिहास में सबसे अधिक गरम वर्ष रहा है, बताने की आवश्यकता नहीं क्योंकि इसे हम सब भुगत ही रहे हैं। जिससे मिलो यही कह रहा है कि अपने जीवन में आज तक ऐसी गर्मी हमने नहीं झेली। यह तो एक दिन होना ही था क्योंकि जिस प्रकार से हमने अपनी धरती माता का शोषण किया है- लगातार जंगल काटते चले गए हैं, नदियों को प्रदूषित किया है, पहाड़ उजाड़ कर दिए, खनिज और तेल के नाम पर उसे खोखला कर डाला, तो ऐसे में धरती मां हमें आशीर्वाद तो नहीं ही देगी। उसके अभिशाप स्वरुप इस वर्ष आइसलैंड में आए ज्वालामुखी के कारण पूरे यूरोप में कई हफ्तों तक वायुयान सेवाएं बंद कर देनी पड़ी थीं। पिछले पांच- छह महीनों में इंडोनेशिया में दो- तीन बार भयानक भूकंप आ चुका है, इससे सुनामी का खतरा पैदा हो गया। इसी महीने अंडमान निकोबार में 7.5 स्तर का भूकंप भी आया जिसके कारण भी सुनामी की आशंका पैदा हो गई थी। ये दूसरी बात है सुनामी नहीं आई।
पिछले दो महीने से मेक्सिको की खाड़ी में ब्रिटिश पेट्रोलियम समुद्र की तली से जो तेल निकाल रहा है उस पाइप लईन में छेद हो गया जिसके कारण नित्य हजारों बैरल तेल निकलकर समुद्र के पानी में मिल रहा है, जिसके कारण बड़ी संख्या में समुद्री जीव- जंतु और पक्षी मर रहे हैं, इससे संयुक्त राज्य अमेरीका के कई राज्यों में पर्यावरण का गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। स्थिति कितनी भयानक है वह इसी से समझा जा सकता है कि अमेरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की नींद हराम हो गई है।
हाल ही में योरोप और भारत के अध्ययन दल ने धरती का तापमान बढऩे और हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने के कारणों का अध्ययन करके जो जानकारी दी है वह दिल दहला देने वाली है। बताया गया है कि तापमान बढऩे के कारण ग्लेशियर के पिघलते चले जाने से नेपाल के अनेक छोटे- छोटे ताल- तलैये भारी झीलों में तब्दील हो गए हंै और यदि किसी चट्टान के सरकने से झील का पानी बहना शुरु हो गया तो नेपाल में ऐसी सुनामी आयेगी जिससे वहां की जनता, जीव- जंतु और वनस्पतियों का भारी विनाश होगा। तब बिल्कुल प्रलय का दृश्य होगा। और जहां तक हमारा सवाल है तो नेपाल की सीमाएं भारत से मिली होने और धरती का ढलान नेपाल से भारत की ओर होने के कारण नेपाल के भीतर की ये त्रासदी हमारे देश में भी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में विनाश का भयानक तांडव करेगी।
यद्यपि यह भी अकाट्य सत्य है कि धरती माता के साथ जब- जब भी दुव्र्यवहार हुआ है और विनाश के रुप में उसने अपना तांडव दिखाया है तो उस विनाश को रोकने के लिए मनुष्य को ही प्रयत्न करने पड़े हैं। बाढ़, भूकंप, तूफान जैसी आपदाओं से बचने के उपाय अपने स्तर पर मानव स्वयं और वहां की सरकारें करती हैं। लेकिन जो सरकारें अपनी करतूतों से इस तरह के विनाश को स्वयं ही आमंत्रित करती हैं भला उनसे किसी उचित कदम की कैसे उम्मीद की जा सकती है। हमारे देश में भोपाल गैस कांड जैसी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना घट जाती है जिसमें हजारों की जान चली जाती है पर हमारी सरकारें हैं कि अपनी जनता के दुख- दर्द की चिंता करने के बजाए जिनके कारण यह भयावह दुर्घटना हुई है उनको ही बचाने में लगी रहती है। ऐसे में भला हम यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले विनाश को रोकने की दिशा में पहले से ही कोई कदम उठाने के बारे में सोचा जाएगा।
जैसा कि ऊपर शीर्षक में ही कहा गया है कि धरती माता क्रोधित है और स्थिति ऐसी हो गई है कि किसी के पास इसका जवाब नहीं है कि इस विषम स्थिति से कैसे उबरा जा सकता है। उत्तर तो हमारे पास भी नहीं है लेकिन धरती को तन- मन से मां मानने वाले हम और हमारे सुधी पाठकों का ये फर्ज हो जाता है कि अपने निजी स्तर पर धरती माता का सम्मान हम सोते जागते करें और सम्मान करने का यह तरीका है अपने जीवन में जितने भी हरे पेड़ लाग सकें लगाएं, जितने भी नदी, ताल- तलैयां हैं उन्हें प्रदूषण मुक्त रखें। जंगल पहाड़, झरने, अभयारण्य आदि सभी प्राकृतिक पर्यटन स्थलों पर पर्यटक बन कर तो जाएं पर उन जगहों की रक्षा करें वहां पर पॉलीथीन जैसा, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला कचरा फेंक कर धरती के संतुलन को न बिगाड़ें।
इस प्रकार के प्रयास से हम अपनी अगली पीढ़ी को संदेश दें कि धरती माता जो वास्तव में हमारी जगत माता है उसका सम्मान करना और उसके क्रोध को शांत करने के लिए सक्रिय कदम उठाना हम सबका धर्म है।

-डॉ. रत्ना वर्मा

2 comments:

सुरेश यादव said...

रत्ना जी ,आप ने पर्यावरण को विषय के रूप में चुन कर सार्थक और सटीक विचार व्यक्त किया है.आप बधाई की पात्र हैं.मां का गुस्सा तो तभी फूटता है जब उसकी संतानें वडी गलती करते हैं.

Anonymous said...

रत्ना जी सही कहा है आपने पर्यावरण के प्रति हम अभी सचेत नही हो रहे हैं यह धरती मां का ही तो क्रोध है कहीं बाढ़ तो कही सूखा पड़ा है. मां कभी अपने बच्चों का बुरा नही करती समय रहते हमे अपनी मां को मना लेना चाहिए.