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Mar 18, 2010

समानता का अधिकार


भारत में इस समय महिलाएं राष्ट्रपति, अध्यक्ष लोकसभा, अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी, नेता विपक्ष लोकसभा, मुख्यमंत्री, उच्च न्यायलयों में जज सरीखे कई उच्च पदों पर आसीन हैं। विदेश मंत्रालय की विदेश सचिव और भारतीय सेना के लिए अंतर- महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र के निर्माण की निदेशक महिलाएं ही हैं। जिस किसी उच्च पद पर महिलाओं को अवसर दिया गया है वे उसे कुशलता से बखूबी निभा रही हैं। गत वर्ष के भारतीय प्रशासनिक सेवा के परिणामों में प्रथम तीन स्थनों पर महिलाएं ही सफल हुईं हैं। स्कूल कालेजों की वार्षिक परीक्षाओं में लड़कियों के परीक्षा फल हर वर्ष लड़कों से बेहतर होते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि स्त्रियों में बौद्धिक प्रतिभा पुरुषों के समान ही होती हंै। परंतु क्या ये तथ्य इस बात का भी प्रमाण है कि हमारे समाज में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समतुल्य हो गई है?
वास्तव में देखें तो हमारे समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय बनी हुई है। उपरोक्त उच्च पदों पर महिलाओं का होना तो बिलकुल वैसा ही है जैसे किसी टूटी- फूटी जर्जर दीवार पर रंगीन आकर्षक पोस्टर चिपकाना और इसे हमारे समाज में स्त्री के सामाजिक स्तर में उन्नति का द्योतक होने का प्रचार करना तो जले पर नमक छिड़कने जैसा है। वास्तविकता में हमारा समाज आज भी बहुत ही मजबूत पुरुष प्रभुत्व की जंजीरों में जकड़ा है और इसमें स्त्रियों की स्थिति आज भी बहुत कुछ खूंटे में बंधी मूक दुधारु गाय जैसी ही है।
इस संदर्भ में वल्र्ड इकानामिक फोरम द्वारा लिंग समानता पर किए गए विश्वव्यापी अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार भी उपरोक्त स्थिति की पुष्टि होती है। इसके अनुसार जिन 130 देशों में यह अध्ययन किया गया है उनमें भारत का स्थान 113 वां है अर्थात स्त्रियों के सबसे निचले स्तर वाले 20 देशों में। ताज्जुब की बात तो यह है कि बंगलादेश और संयुक्त अरब अमीरात का नाम भारत से ऊपर है। इस अध्ययन में सभी देशों के समाज में स्त्रियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के अवसर तथा राजनीतिक स्थिति में हुई प्रगति का आकलन करके, देशों को सूची में क्रमबद्ध किया गया है। स्त्रियों का सामाजिक स्तर सर्वोत्तम नार्वे में पाया जाता है अत: नार्वे को इस सूची में प्रथम स्थान प्राप्त है। इसी प्रकार एक अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरपार्लियांमेंट्री यूनियन द्वारा विश्व भर के देशों में महिलाओं की राजनीतिक स्थिति का जो सर्वेक्षण किया गया है उसके अनुसार तो भारत का स्थान 99वें नंबर पर आता है।
उक्त अध्ययनों के अनुसार अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और जीवित रहने की उम्र के पैमाने पर भारतीय स्त्रियों की स्थिति इन सभी देशों के मुकाबले सबसे खराब है। इस शर्मनाक स्थिति का कारण है अधिकांश भारतीय स्त्रियों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं का उपलब्ध न होना। भारत में प्रसव के दौरान प्रत्येक एक लाख में 450 स्त्रियों की मृत्यु हो जाती है। यह दर विश्व में सबसे ऊंची है। हमारे यहां स्त्रियां पुरुषों से सिर्फ एक वर्ष अधिक जीवित रहती हंै। जबकि विश्व के अधिकांश देशों में स्त्रियां पुरुषों से औसतन 5 से 7 वर्ष ज्यादा उमर तक जीवित रहती हैं। यहां अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं तो दूर की बात है, ग्रामीण क्षेत्र में अधिकांश स्त्रियों को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं तक प्राप्त नहीं हैं।
अध्ययन में पिता और माता के अधिकार की भी तुलना भी की गई है जिसमें हमारे समाज को सबसे निम्न श्रेणी में रखा गया है। परिवार में मां की दुर्गति का प्रमाण है हमारे देश में विशेषतया पंजाब, हरियाणा और गुजरात जैसे समृद्ध राज्यों में कन्याओं की धड़ल्ले से भ्रूण हत्या, जिसके कारण स्त्री- पुरुष अनुपात अवांछित रुप बिगड़ चुका है। इससे यह भी स्पष्ट है कि समाज में सिर्फ आर्थिक प्रगति से स्त्रियों की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता। पुरुष प्रभुत्व की दमनात्मक गतिविधियों का एक और प्रमाण है कन्याओं की भ्रूण हत्या और परिवार की इज्जत के नाम पर युवतियों की हत्या और दहेज हत्या। हमारे समाज में पुरुष प्रभुत्व से उत्पन्न ये ऐसे कलंक हैं जिनके कारण स्त्रियों की भारतीय समाज की सबसे निचली श्रेणी में गणना होना उचित ही है।
इमानदारी की बात तो यह है कि हमारी आधी आबादी अर्थात स्त्रियां वास्तव में एक दलित वर्ग हैं। दलित जातियों के लिए तो संविधान निर्माताओं ने चिंता की है और उनकी प्रगति के लिए संवैधानिक प्रावधान किए। लेकिन देश के सबसे बड़े दलित वर्ग यानी स्त्री के पारंपरिक दमन की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। दहेज विरोधी, कन्या भू्रण हत्या प्रतिबंध, घरेलू हिंसा इत्यादि से संबंधित कानून बनाने जैसी कुछ कागजी कार्रवाई अवश्य की गई हैं, लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था के सभी अंगों के भ्रष्टाचार से ग्रसित होने के कारण इनके तहत कोई कार्रवाई होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ये कानून फटे कपड़ों में थिगड़े लगाने जैसे हैं। ऐसा ही पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक दलों द्वारा संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत स्थान सुरक्षित करने का आम चुनाव के समय चलाया जाने वाला मखौल भी है। वैसे राज्यसभा में महिलाओं के आरक्षण संबंधित संविधान संशोधन पास तो हो गया लेकिन जिस परिप्रेक्ष्य में हुआ वह बहुत ही गंदा था, जो भारतीय समाज में स्त्रियों की सोचनीय स्थिति का एक और प्रमाण है। राज्य सभा में संविधान संशोधन का पास होना पहला कदम है, इसके वांछित रूप में कारगर होने की प्रक्रिया बहुत लंबी है। देखना है, यह कब पूरी होती है।
किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक रुप से समृद्ध होने के लिए आवश्यक है शिक्षा और स्वास्थ्य जिसमें उनका खान- पान भी शामिल हैं जैसी आवश्यक सुविधाएं समान रुप से सुलभ हों। एतएव भारतीय स्त्रियों के वर्तमान स्थिति से उबरने के लिए आवश्यक है कि अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं (विशेषतया ग्रामीण क्षेत्र में) के लिए सरकारी बजट में वांछित प्राथमिकता दी जाए। जब हमारे देश के सभी नर- नारी समान रुप से सुशिक्षित और स्वस्थ होंगे तभी वे एक समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण कर सकेंगे।


- रत्ना वर्मा

1 comment:

anjeev pandey said...

रत्ना जी,
अनकही में आपने स्त्रियों की दशा पर वर्ल्ड इकानामिक फोरम के सर्वे के आधार पर प्रकाश डाला है। यह अध्ययन वाकई आंखें खोल देने वाला है। आपने ही उर्द्धृत किया है उन सभी पदों के जिन पर महिलाएं आसीन हैं। कहीं न कहीं लगता है अन्य सभी वर्गों के उत्थान के समान ही पनप चुकी असमानता की तरह ही ही महिलाओं में आंतरिक असमानता काफी बढ़ चुकी है। इस ओर यदि ध्यान आकर्षित किया जाए तो अधिक कारगर होगा।

अंजीव पांडेय
समाचार संपादक
मेट्रो ७
नागपुर