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Mar 17, 2010

धानी चुनर

- कवि कुलवंत सिंह

रंग होली के कितने निराले,
आओ सबको अपना बना लें,
भर पिचकारी सब पर डालें,
पी को अपने गले लगा लें ।

रक्तिम कपोल आभा से दमकें,
कजरारे नैना शोखी से चमकें,
अधर गुलाबी कंपित दहकें,
पलकें गिरगिर उठ उठ चहकें ।

पीत अंगरिया भीगी झीनी,
सुध बुध गोरी ने खो दीनी,
धानी चुनर सांवरिया छीनी,
मादकता अंग अंग भर दीनी ।

हरे रंग से धरा है निखरी,
श्याम वर्ण ले छायी बदरी,
छन कर आती धूप सुनहरी,
रंग रंग की खुशियां बिखरीं ।

नीला नीला है आसमान,
खुशियों से बहक रहा जहान,
मस्ती से चहक रहा इंसान,
होली भर दे सबमें जान।

1 comment:

Anonymous said...

कवि कुलव्न्त जी की रचनाएं हमेशा नयापन लिए होती हैं .होली पर भी इनकी कविता उतनी ही सुन्दर है..बधाई कुलवन्त जी!