उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Dec 2, 2009

पहाडिय़ों पर बसा कोंकण



-अभिषेक ओझा
2007 मेरे लिए कई मायनों में यादगार रहा। कुछ यात्राओं का भी इसे यादगार बनाने में योगदान रहा। अगर आप कम भीड़ और साफ सुथरी प्राकृतिक जगह की तलाश में है... तो आपको निराशा नहीं होगी। दिवेआगर निर्विवादित रूप से कोंकण का सबसे अच्छा बालू वाला समुद्रतट है वहीं हरिहरेश्वर के चट्टानयुक्त तट की कोई तुलना नहीं है।
दिवेआगर : व्यवसायिक रूप से पर्यटन स्थल के रूप में तेजी से विकसित हो रहे इस कोंकणी गांव में आप खूबसूरत समुद्री तट के अलावा कोंकणी मेहमानदारी का भी लुत्फ़ उठा सकते हैं। रेसोर्ट्स में रहने से अच्छा है की आप किसी के घर में रुक जाएं और वैसे भी दिवेआगर में यह एक आम प्रचलन है। अगर आप मांसाहारी हैं तो कोंकणी समुद्री भोजन का आनंद ले सकते हैं और अगर मेरी तरह शाकाहारी हैं तो भी आपके लिए बहुत कुछ मिलेगा। पर किसी के घर में रुकने के लिए आपको अग्रिम बुकिंग करनी पड़ेगी। मुम्बई और पुणे से पास होने के कारण वीकएंड पर लोग यहां जाना पसंद करते हैं और अगर लंबा वीकएंड हो या नववर्ष जैसे अवसर हो तो फिर बुकिंग तो करनी ही पड़ेगी। मैंने कुछ 25-30 जगह कॉल किया होगा। दिवेआगर मुम्बई से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मुम्बई-गोवा हाइवे पर मनगांव से दाहिनी तरफ़ मुड़ जाएं आप दिवेआगर पहुंच जायेंगे। अगर आप पुणे में रहते हैं तो चांदनी चौक से पौड रोड होते हुए दिवेआगर पहुंच सकते हैं... रास्ते में मुल्शी झील और तामिनी घाट में भी अच्छी जगहें हैं।
मैं आपको एक बात की गारंटी तो दे ही सकता हूं... आपको दिवेआगर से अच्छा समुद्रतट कोंकण क्षेत्र में नहीं मिलेगा। पूर्णिमा की रात थी और हम 12 बजे रात तक समुद्र के किनारे बैठे रहे। सबसे अच्छी बात ये थी की यहां अन्य पर्यटक स्थलों की तरह बोतल और प्लास्टिक नहीं दिखे... ग्रामीण परिवेश और साफ सुथरा, प्राकृतिक, दूर तक फैला हुआ समुद्र तट... इसके अलावा और क्या चाहिए छुट्टियां बिताने के लिए !
पर इतना तो स्पष्ट हो गया की ये जगह भी जल्दी ही बाकी जगहों की तरह व्यवसायिक और प्रदूषित हो जायेगी। और जहां ग्रामीण परिवेश में अभी भी लोग अपनी जरुरत से ज्यादा कमाने की भावना से ग्रसित नहीं हुए हैं। वहीं शहरों की तरह यहां भी ऐसे लोग बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं... जो हर सामने आने वाले आदमी से ही जिंदगी भर का खर्चा निकाल लेना चाहते हैं। अगर आपको रुकने की जगह नहीं मिल रही हो और कोई रिसॉर्ट वाला वहां के स्तर से 5 गुना ज्यादा मांग लें तो आप आश्चर्य मत कीजियेगा। वैसे कुल मिला के हमारी यात्रा अच्छी रही... बाकी जगहों एैसी-एैसी समस्याएं हो जाती हैं कि ये छोटी-मोटी समस्याएं भुलाने में कोई ज्यादा वक्त नहीं लगा।
अलीबाग - अलीबाग का नाम आपने जरूर सुना होगा... हिन्दी फिल्मों में अक्सर इसका जिक्र आता है। महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित अलीबाग के आस- पास कई खुबसूरत समुद्री तट हैं। पर सबसे प्रसिद्ध है... अलीबाग बीच। पुणे से लोनावाला-खोपोली-पेण होते हुए तकऱीबन 140 किलोमीटर कि यात्रा करने के बाद अलीबाग आता है। मानसून का समय हो तो ये रास्ता भी अपने आप में बड़ा खुबसूरत होता है। (वैसे पुणे- मुंबई के आस-पास मानसून के समय घुमने का मजा ही कुछ और है... मुंबई पुणे के बीच के एक्सप्रेस मार्ग पर भी काफ़ी अच्छे दृश्य देखने को मिलते हैं) अगर मुंबई से आना हो तो यहां तक सीधे जल मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है।
खुली हवा, ढेर सारे पक्षी और साफ़ दूर तक फैले हुए समुद्री तट के अलावा अलीबाग बीच पर स्थित 'कोलाबा किला' भी दर्शनीय है। (यह मुंबई के कोलाबा से भिन्न है) मुरुड- जलजीरा भी पास में ही स्थित है। समुद्र तट कि खूबसूरती तो आप तस्वीरों में देख ही सकते हैं। कोलाबा किला अलीबाग तट से करीब 2 किलोमीटर दूर समुद्र में स्थित है। लो टाइड (भाटा) हो तो पैदल या घोड़ा गाड़ी से आसानी से जाया जा सकता है नहीं तो नाव से जाना पड़ सकता है। कई बार ज्वार कि स्थिति में वहां जाना खतरनाक हो सकता है। वहां पर हुई दुर्घटनाओं तथा सावधान रहने कि चेतावनी आप जरूर ध्यान से पढ़ लें। (मैंने नहीं पढ़ा था पर आप ऐसी गलती मत कीजियेगा।)
किले का निर्माण छत्रपति शिवाजी ने 17 वीं सदी के उत्तरार्ध में किया था। इस किले के निर्माण को शिवाजी की दूरदर्शिता और उनके जल सेना के उपयोग के प्रमाण के रुप में भी देखा जाता है। कहते हैं कि शिवाजी ने उसी समय नौ सेना की उपयोगिता समझ ली थी और ऐसे किलों के साथ-साथ उत्तम नौ-सैनिक बेड़े की व्यवस्था भी की थी। खंडहर का रूप ले चुके किले के अन्दर मीठे पानी का कुंआ है और गणेश भगवान का एक शांत मन्दिर...।
हरिहरेश्वर - दिवेआगर से श्रीवर्धन और फिर हरिहरेश्वर कुछ 30-35 किलोमीटर की यात्रा है। इस यात्रा की सबसे खुबसूरत बात ये है की ये लगभग पूरे समय समुद्र (अरब सागर) के किनारे-किनारे चलता है। बस दाहिनी तरफ़ देखते रहो और खुबसूरत समुद्री नज़ारा दिखता रहता है।
ये नजारे यात्रा को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। बीच में मछुवारों के गांव से गुजरते समय बस थोड़ी देर के लिए नज़ारा छुटता है और इसी थोड़ी देर में ही मछली की तीखी गंध भी नाकों में प्रवेश करती है। तटीय क्षेत्र होने के कारण मुख्यत: यहां के जीवन-यापन पर मछली और नारियल का बहुत बड़ा योगदान दिखना स्वाभाविक ही है।
अगर आप धर्म में रूचि रखते है तो कुछ प्रसिद्ध मन्दिर भी हैं इस क्षेत्र में।
श्रीवर्धन का समुद्रतट है तो सुंदर! पर इस क्षेत्र के अन्य समुद्र तटों को देखने के बाद कुछ ख़ास प्रतीत नहीं होता। पर हरिहरेश्वर पहुंचने के बाद चट्टान वाला तट... आपको मोहित कर लेगा। अगर आप प्राकृतिक संरचना और नजारों के शौकीन हैं तो फिर निराशा का सवाल ही नहीं उठता। हरिहरेश्वर का प्रसिद्ध 'काल भैरव' शंकर भगवान का मन्दिर है। मन्दिर के समीप प्रदक्षिणा का मार्ग बना हुआ है।
धार्मिक भावना हो न हो अगर एक बार आप वहां तक गए हैं और इस मार्ग पर नहीं गए तो बहुत कुछ छुट जायेगा... एक तरफ़ अरब सागर और दूसरी तरफ़ लहरों से कटे-छंटे चट्टान... प्रकृति के खुबसूरत नमूने हैं। दो खड़े चट्टानों के बीच बनी सीढी से उतरना और फिर तट तक पहुंचना... अगर ज्वार का समय हो तो आप चट्टानों से टकराती हुई लहरों को भी देख सकते हैं। पर पत्थरों की संरचना भी अपने आप में बहुत खुबसूरत है। ऐसी मान्यता है की अगस्त मुनि का आश्रम यहां हुआ करता था।
इस मन्दिर के समीप ही महाराष्ट्र पर्यटन विभाग का रिसॉर्ट और एक अन्य खुबसूरत समुद्री तट है। यहां से चट्टानयुक्त और बालू दोनों के ही तट समीप ही हैं। एक-आध छोटे वाटर स्पोर्ट्स की भी व्यवस्था हैं।

1 comment:

Anonymous said...

खूबसूरत यात्रा वॄतांत या फ़िर यूं कहें कि यात्रा करवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।