उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Nov 20, 2009

सिंघनपुर के शैलचित्र


शैलचित्र आदिमानवों के अभिव्यक्ति का प्रमाण है। आदिमानवों के पास भाषा नहीं थी इसलिए वे कंदराओं को ब्लैकबोर्ड की तरह अपने विचारों की अभिव्यक्ति के रूप में उपयोग करते थे।
 छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला पुरातत्व की दृष्टि से काफी समृद्ध है। यहां विश्व का प्राचीनतम शैलाश्रय सिंघनपुर है। पुरातत्ववेताओं की दृष्टि से जो 30 हजार वर्ष ईसा- पूर्व के हो सकते हैं। उनके अनुसार यह स्पेन और मैक्सिको से प्राप्त शैलाश्रयों के समकालीन हैं। पुरातत्ववेत्ता स्व. एंडरसन ने 1912 में प्रथम बार इन शैलचित्रों को देखा था। इंडियन पेंटिंग्स 1918 में तथा इनसायक्लोपिडिया ब्रिटेनिका के 13 वें अंक में पहली बार सिंघनपुर के शैलचित्रों की सूचना प्रकाशित हुई थी और विश्व के पुरातत्वविद इस ओर आकृष्ट हुए थे। 1923 से 1927 तक पुरातत्ववेत्ता स्व. अमरनाथ दत्ता ने सिंघनपुर के शैलचित्रों पर व्यापक सर्वेक्षण कार्य किया। उन्होंने अपनी पुस्तक 'ए फ्यू रैलिक्स एण्ड द राक पेटिंग ऑफ सिंघनपुर' का प्रकाशन  किया था। स्व. लोचनप्रसाद पाण्डेय 'महाकोशल हिस्टोरिकल पेपर्स' में सिर्फ सिंघनपुर ही नहीं अपितु अंचल के महत्वपूर्ण स्थलों का ऐतिहासिक महत्व के साथ प्रकाशन किया था।
यह खुशी की बात है कि पिछले दिनों भारत सरकार के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) नई दिल्ली द्वारा पहली बार यहां की एक दर्जन पहाड़ों और गुफाओं का वैज्ञानिक दृष्टि से विस्तृत अध्ययन व फिल्मांकन किया जा रहा है। इसके लिए क्षेत्र की आबो हवा, पर्यावरण आदिमानवों द्वारा छोड़े गये औजार, जानवरों की हड्डिया, उनके रहन-सहन जैसे विषयों का भी गहनता से अध्ययन हो रहा है। इस अध्ययन से उम्मीद जागी है कि छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले का नाम भी शैलचित्रों के लिए विश्व परिदृश्य में उभर कर सामने आ आयेगा। इस समय किये जा रहे इस अध्ययन में यहां 12 करोड़ से 90 करोड़ वर्ष पुराने शैल चित्र पाये गये है।  शैलचित्रों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध रायगढ़ जिले की सिंघनपुर गुफा और कबरा पहाड़ के अलावा जिले में टिमरलगा, चोरमाड़ा, गाताडीह, सिरोली डोंगरी, कर्मागढ़, ओंगना, पोटिया, बसनाझर और बोतल्दा में भी अनेक शैलाश्रय हैं।  आदिमानवों द्वारा उकेरे गये इन शैलचित्रों के आधार पर तत्कालीन रहन-सहन, पशु और संस्कृति के साथ-साथ प्राकृतिक अवस्था का भी पता चलता है। कुछ  एक  शैलचित्रों  में शुतुरमुर्ग,  डायनासोर  और जिराफ  से  मिलते- जुलते जानवरों को उकेरा गया है, जो  इस क्षेत्र में करोड़ों वर्ष पूर्व इनकी मौजूदगी की ओर संकेत करता है। इनमें हिरण, वन भैंसा, मछली, सांप, हाथी जैसे पशुओं के अलावा कुछ नये शैल चित्र भी मिले है जो गोंडवाना शैली के है। साथ ही प्राकृतिक कारणों से आये बदलाव को भी ये शैलचित्र रेखांकित करते है।
आईए जानते हैं रायगढ़ जिले में प्राप्त कुछ महत्वपूर्ण शैलाश्रयों के बारे में-
बसनाझर शैलाश्रय- रायगढ़ से 28 किमी की दूरी पर बसनाहर शैलाश्रय है जो बम्हनीन पहाड़ों पर 2000 फीट की ऊं चाई पर स्थित है। इस शैलाश्रय में लगभग चार सौ शैलचित्र हैं। यहां के शैलचित्रों में जंगली पशुओं और आखेट के  दृश्य  प्रमुखता से चित्रित किए गए हैं। इस जिले में हाथी का चित्र केवल इसी शैलाश्रय में अंकित है। गहरे गैरिक रंग (रेड आर्च कलर) में अंकित इन चित्रों का आकार 7 इंच से लेकर 18 इंच तक है। इनमें सामूहिक नृत्य, शिकार, जंगली भैसा, हिरण गोह, अश्व के चित्र बड़ी संख्या में नजर आते हैं।
कबरा शैलाश्रय- कबरा शैलाश्रय रायगढ़ से 8 किमी पूर्व में ग्राम विश्वनाथ पाली तथा भैजा पाली के निकट पहाड़ी में स्थित है। यहां करीब दो हजार फीट की सीधी चढ़ाई चढ़कर पहुंचा जा सकता है। इस शैलाश्रय के अनेक चित्र अभी भी सुरक्षित अवस्था में है। कबरा शैलाश्रय के गैरिक रंग के शैलचित्रों में कछुवा के चित्र प्रमुख रुप से पाए गए हैं जो तीन इंच से लेकर एक फीट तक हैं। यहां अश्व के चित्र भी सजे हुऐ नजर आते हैं जो छोटे तथा बड़े आकार में हैं। यहां  हिरण की आकृतियां भी दिखाई देती है। जिले के अब तक ज्ञात शैलचित्रों में विशालतम जंगली भैसे का चित्र प्रमुख है। 
 बसनाहट तथा धर्मजयगढ़ के ओंगना की शैलचित्रों में अद्भूत समानता है। कबरा शैलाश्रय जहां पूर्वमुखी है वहीं सिंघनपुर दक्षिण पूर्व तथा बसनाझर उत्तर की ओर है।
ओंगना शैलाश्रय- यह रायगढ़ से 72 किमी उत्तर में धर्मजयगढ़ के निकट ओंगना गांव में स्थित है। पश्चिममुखी इस शैलाश्रय  में तीस फुट चौड़े और 20 फीट ऊंचे एक ही शिलाखंड पर गहरे और हल्के गैरिय रंग के लगभग एक सौ शैलचित्र अंकित है।
कर्मागढ़ शैलाश्रय- यह जिले का प्रागैतिहासिक धरोहर है जो रायगढ़ से 30 किमी पूर्व में उड़ीसा सीमा पर स्थित उषाकोठी पहाड़ी पर स्थित है। इस शैलाश्रय  में तीन सौ से अधिक बहुरंगी आकृतियां एवं जलचरों की आकृतियां हैं जो तीन सौ फीट लंबी तथा बीस फीट चौड़े क्षेत्र में पूर्वामुखी पाषाण शिलाखंड पर अंकित है।  कर्मागढ़ के पश्चिम में भैंसगढ़ी के बांस के जंगलों में भी बेनीपाट शैलाश्रय हंै।
जिले का एक और शैलाश्रय रायगढ़ से 66 किमी की दूरी पर घरघोड़ा के आगे नवागढ़ी पहाड़ी पर 2000 फुट ऊंचाई पर स्थित एक गुफा में है। यह चित्र गहरे गैरिक रंग में एक वृत का है। जिसका व्यास साढ़े सात फीट है। इस वृत के भीतर 4 फुट का एक व्यास आठ खड़ी और आठ आड़ी रेखाओं में विभाजित है, इन खण्डों में कई आकृतियां उकेरी गई हैं। इन शैलचित्रों को देखकर लोग कहते हैं कि इन संकेतों के पीछे डोम राजाओं का खजाना छिपा हुआ हैं जिन्होंने 17 शताब्दी में यहां आश्रय लिया था।
दुख की बात है कि ये समस्त शैलचित्र संरक्षण के अभाव और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हो रहे हैं, अत: पुरातत्वविद चाहते हैं कि इन शैलाश्रयों के बारे में अधिकाधिक जानकारी जुटा कर उन्हें लिपिबद्ध किया जाए और उनके संरक्षण के बारे में  लोगों को जागरूक किया किया जाए।
(उदंती फीचर्स)

No comments: