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Jun 12, 2009

जूते की जंग

- अविनाश वाचस्पति
जूता पहले काटने के लिए खूब कुख्यात रहा है परन्तु अपने नएपन में। जैसे नया आया कुत्ता सभी को काटने के लिए उद्यत मिलेगा। उसी तरह नया नया जूता पैर की खूब किसिंग करता है पर आजकल ब्रांडिड जूतों में यह गुण नहीं पाया जाता है। आज कल के जूते में नए गुणों की भरमार हो गई है। जूते की मार व्यापार हो गई है। जूते की मार से चैनलों की टी आर पी बढ़ती है।
जूता एक बारहमासी उपयोगी मस्त चीज है। पहना जाता है पर वस्त्र नहीं है। चमकाया जाता है पर आईना नहीं है। इसके बिना चलना दूभर है, बिना इसके पैरों के तलवे पर संकट है। कड़ी धूप, कड़ाके की ठंड, रेतीला सफर और पथरीला मार्ग इस पर सवार होकर यानी इन्हें धारण करके सरलता से पार किए जा सकते हैं। जूता पहले काटने के लिए खूब कुख्यात रहा है परन्तु अपने नएपन में। जैसे नया आया कुत्ता सभी को काटने के लिए उद्यत मिलेगा। उसी तरह नया नया जूता पैर की खूब किसिंग करता है पर आजकल ब्रांडिड जूतों में यह गुण नहीं पाया जाता है। आज कल के जूते में नए गुणों की भरमार हो गई है। जूते की मार व्यापार हो गई है। जूते की मार से चैनलों की टी आर पी बढ़ती है। अखबारों की जगह घिरती है। सुर्खियां बनती हैं। जूता आजकल चुनाव की नाव को डुबोने में सक्षम हो चुका है।  कुत्ते के तरह जूते के काटने की पर इंजेक्शन नहीं लगवाए जाते क्योंकि इससे रैबीज नामक बीमारी नहीं होती।
जूते को पैरों में पहने जाने के कारण नीचे दर्जे का माना गया है। जूते की मरम्मत के काम को पहले से ही दोयम दर्जे का माना जाता रहा है। पर अब जूते के नए कर्मों को पत्रकार, नाखुश पार्टी सदस्य इत्यादि अंजाम तक पहुंचा रहे हैं। जूते पैर नीचे होने पर भी उपर ले जाने का काम करते हैं। यदि आदमी चल ही न पाए तो सारी प्रगति धरी रह जाए। बढऩे, चढऩे, लडऩे और अंगद की तरह अडऩे के लिए पैर जरूरी हैं। पैरों की उपयोगिता पर सवाल उठाना भी बेमानी है। पैरों के बिना इधर से उधर और उधर से इधर होना सरकना संभव नहीं है। पैर न हों तो बचपन में घुटनों के बल सरकने का आनंद नहीं लिया जा सकता जो कि चलने की पहली सीढ़ी है। बिना पैर न तो आदमी खुद ही चल सकता है और न किसी प्रकार का वाहन ही चला सकता है, चलवाने की बात छोडि़ए। अगर जानवरों द्वारा खिंचित सवारी को वाहन न माना जाए। उसके उपर तो किसी को भी पटक दो तो ले ही जाएगा।
पैर भी उपयोगी और उसमें पहने जाने वाले जूते और उपयोगी अब तो उसके चलने से असंभव कार्य भी सहजता से संपन्न होने लगे हैं। जूतों पर बने हुए सभी मुहावरों और लोकोक्तियों को दोबारा से सृजित करना पड़ेगा। जूते के संबंध में होती प्रगति जूता जनार्दन की आवाज को अमली जामा पहना रही है। नेताओं को धमकिया रहा है। उनके सपनों में आ रहा है। पर जूते वाली जफ्फी से नेता वंचित हैं। लगता है जूतों को नेता नहीं भा रहे हैं। इसलिए नेता के अगल-बगल से सरक जाते हैं। एक भी वाक्या ऐसा नहीं हुआ कि जूता नेता के गले मिला या मुंह चढ़ा हो। ऐसा लगता तो नहीं है कि जूता अपनी साख बचा रहा हो। जूता नेताओं के लिए खौफ का पर्याय हो गया है।
कहा तो यह भी जाता है कि नेता तो कर्म ही ऐसे कर रहे हैं कि उन्हें जूते खाने चाहिए। पर जूते खाने की चीज न होते हुए भी खूब खाए जा रहे हैं और खाते हुए भी बेखाए हुए हो रहे हैं। जूता और नेता का चोली दामन का अनचाहा साथ हो गया है।
जूता कंपनी का उद्घाटन भविष्य में जूता खाकर ही करना अनिवार्य होने वाला है। इससे रिहर्सल भी हो जाएगी और बचने के गुर भी सीखे जा सकते हैं। जूते के निशाने से बचने के गुर सिखाने के लिए किसी जूता विश्वविद्यालय में जूता डिप्लोमा या जूता कोर्स आरंभ किया जा सकता है। जूता खा चुके नेताओं के भाषण सत्र आयोजित किए जा सकते हैं। दोपहिये पर सवारी करने पर हेलमेट पहनने की अनिवार्यता अब ट्रांसफर होकर भाषण या प्रेस कांफ्रेंस करने वाले के लिए आवश्यक होती दिखलाई दे
रही है।
जूता पर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शुरू करने की मांग की जा रही है। जूता मंत्रालय की स्थापना का मुद्दा घोषणापत्र में स्थान पा चुका है। जूते के जलवे पर शोध प्रबंध लिखवाए जा रहे हैं। जूते की जवानी पर, उसकी रवानी पर और जूते का जश्न मनाया जा रहा है। जूते के हुस्न के चर्चे विषय पर कविता प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। जूता चेहरे के आगे दौड़ के बोलता है। भाषण देते समय नेता की आंखों में जूते के खौफ का जायजा लिया जा सकता है। आतंकवादी जूता बम बना सकते हैं। जूते के कहर के आगे जूता बम का भविष्य सुनहरा है। जूते की सदाबहार जंग चुनावों में विजयी रही। क्या विदेश क्या देश सब कुछ जूतामय हो गया है। जूते की एक नई संस्कृति जन्म ले चुकी है जिसके विकास की भरपूर संभावनाएं हैं। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि लोकतंत्र बदलकर जूतातंत्र के रूप में ख्याति पा जाए। जबकि सूरते हाल यही बयां कर रहे हैं।

6 comments:

अजय कुमार झा said...

avinash bhai....kamaal hai roj ek naya roop ..ek nayee jagah ke saath milte hain aap.jooton kaa dilchasp itihaas jaankar maja aa gaya..

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत अच्छा,धन्यवाद

फिर देखना,जूते हर महफ़िल की शान बनेगें,
जुतो पर इम्तिहान मे प्रश्न भी पूछें जाएँगें,
और साल मे एक दिन सब जूता डे भी मनाएँगे.

शेफाली पाण्डे said...

बहुत ही जबरदस्त व्यंग्य है ...

राकेश कुमार said...

बुराई के खिलाफ अमर्यादित जन्ग का प्रतीक यह जूता सचमुच आज खौफ का प्रतीक बनता जा रहा है, पर कही ना कही हमे सयम की आवश्यकता है. और शायद नेताओ को सन्केत मे अब समझने की भी जरुरत है अन्यथा सवेदनहीनता किसी और स्वरूप मे जन्ता के गुस्से के रूप मे प्रगट हो सकती है.

बधाई,बेहद शानदार, गद्य के साथ पद्य सा आनन्द.

राकेश कुमार

अविनाश वाचस्पति said...

डॉ. रत्‍ना जी जूते की जंग को चित्रों की भंग पिलाने के लिए धन्‍यवाद।

राजीव तनेजा said...

मज़ेदार है आपका जूता पुराण