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Aug 15, 2008

उदंती.com, अगस्त - 2008

उदंती.com, अगस्त- 2008

मनुष्य जब शेर को मारता है

तो मनुष्य कहता है यह क्रीड़ा है, 
लेकिन जब शेर मनुष्य को मारता है
तो वह कहता है यह बर्बर हिंसा है।
- जार्ज बर्नड शॉ



अनकही : विचारों की नदी - डॉ.  रत्ना वर्मा

कृषि /छत्तीसगढ :
खुशहाली के इंतजार में धान का कटोरा - चंद्रशेखर साहू
पर्यटन / नीति :
देश के पर्यटन नक्शे पर छत्तीसगढ कहां है ? - विनोद साव
उदंती : खूबसूरत गोडेना फॉल - संतोष साव
इंटरनेट : आभासी दुनिया के दीवाने ब्लागर्स - संजीव तिवारी
आलेख: सृजन का पर्याय भिलाई महिला समाज - ललित कुमार
इतिहास से / खजाना :
ओ मेरे सोना रे, सोना रे . . . - प्रताप सिंह राठौर
बस्तर / जीवन शैली :
गोंड जनजाति का विश्वविद्यालय घोटुल - हरिहर वैष्णव 
मीडियाः
छोटे परदे की टीआरपी बढाते बडे सितारे - डॉ. महेश परिमल
संस्मरण : सॉंस सॉंस में बसा देहरादून - सूरज प्रकाश
मन की गांठ / आदत : कृपया क्षमा कीजिए - लोकेन्द्र सिंह कोट
इस अंक के लेखक
सुर्खियाँ- अभिनव तुझे सलाम

विचारों की नदी

विचारों की नदी
डॉ.रत्ना वर्मा
पत्रिकाएं नियमित अंतराल के साथ हर बार एक नया अंक प्रस्तुत करती हुई प्रवाहमान रहती हैं अत: पत्रिकाओं को रचनात्मक विचारों की नदी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

उदंती.com का पहला अंक आपके हाथ में है। इसे देखते ही पत्र पत्रिकाओं से सरोकार रखने वाले बहुतों के मन में यह सवाल जरूर उभरेगा कि लो एक और पत्रिका आ गई? और यह भी, कि पता नहीं इसमें ऐसा क्या नया या अलग होगा जो विशेष या पठनीय होगा? आपका सवाल उठाना वाजिब है, क्योंकि पिछले कुछ समय से राष्टï्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर पत्र- पत्रिकाओं की बाढ़ सी आ गई है। इनमें से अधिकांश पत्रिकाएं या तो बीच में ही दम तोड़ देती हैं या फिर अनियमित हो जाती हैं। जो एकाध बच रह जाती हैं उन्हें भी जिंदा रहने के लिए बहुतेरे पापड़ बेलने पड़ते हैं। ऐसी उफनती बाढ़ में उदंती. com ले कर उतरना बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी नाव को बिना पतवार के नदी में उतार देना और कहना कि आगे बढ़ो।

दरअसल पत्रकारिता की दुनिया में 25 वर्ष से अधिक समय गुजार लेने के बाद मेरे सामने भी एक सवाल उठा कि जिंदगी के इस मोड़ पर आ कर ऐसा क्या रचनात्मक किया जाय जो जिंदा रहने के लिए आवश्यक तो हो ही, साथ ही कुछ मन माफिक काम भी हो जाए। कई वर्षों से एक सपना मन के किसी कोने में दफन था, उसे पूरा करने की हिम्मत अब जाकर आ पाई है। यह हिम्मत दी है मेरे उन शुभचिंतकों ने जो मेरे इस सपने में भागीदार रहे हैं और यह कहते हुए बढ़ावा देते रहे हैं कि दृढ़ निश्चय और सच्ची लगन हो तो सफलता अवश्य मिलती है।

इन सबके बावजूद जैसे ही पत्रिका के प्रकाशित होने की खबर लोगों तक पंहुची एक प्रश्नवाचक चिन्ह चेहरों पर उभरता नजर आया। कुछ ने कहा कि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में आसान नहीं है पत्रिका का प्रकाशन और उसे जिंदा रख पाना, तो किसी ने कहा आपकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी, तो कुछ ने यह कहते हुए शुभकामनाएं प्रेषित की कि ऐसे समय में जबकि रचनात्मकता के लिए स्पेस खत्म हो रहा है आप नया क्या करेंगी? और यह भी कि , यह है तो जोखिम भरा काम लेकिन इमानदार प्रयास सभी काम सफल करता है, आदि आदि... थोड़ी सी निराशा और बहुत सारी आशाओं ने मेरे मन के उस सपनीले कोने में चुपके से आकर कहा कि सुनो सबकी पर करो अपने मन की। सो मैंने मन की सुनी और इस समर में बिना पतवार की नाव लेकर कूद पड़ी, इस विश्वास के साथ कि व्यवसायिकता के इस दौर में अब भी कुछ ऐसे सच्चे, शुभचिंतक हैं, जिनकी बदौलत दुनिया में अच्छाई जीवित है, अत: इस नैया को आगे बढ़ाने के लिए, पतवार थामे कई हाथ अवश्य आगे आएंगे।

पत्रिका के शीर्षक को लेकर भी कई सवाल दागे गए, कि क्या यह वेब पत्रिका होगी या कि सामाजिक सांस्कृतिक, पर्यटन, पर्यावरण अथवा किसी विशेष मुद्दे पर केन्द्रित होगी? कम शब्दों में कहूं तो यह पत्रिका मानव और समाज को समझने की एक सीधी सच्ची कोशिश होगी, जो आप सब की सहभागिता के बगैर संभव नहीं है।

रही बात नाम की, तो उदंती नाम में उदय होने का संदेश तो नीहित है ही, साथ ही उदंती एक नदी है जो उड़ीसा और छत्तीसगढ़ को स्पर्श करती हुई बहती है, इसी नदी के किनारे स्थित है छत्तीसगढ़ का उदंती अभयारण्य, जो लुप्त होते जंगली भैसों की शरणस्थली भी है। मानव सभ्यता एवं संस्कृति का उद्गम और विकास नदियों के तट पर ही हुआ है साथ ही नदी सदैव प्रवाहमान एवं गतिमय रहती है। पत्र- पत्रिकाएं भी नियमित अंतराल के साथ हर बार एक नया अंक प्रस्तुत करती हुई प्रवाहमान रहती हैं अत: पत्रिकाओं को रचनात्मक विचारों की नदी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन्हीं जीवनदायिनी नदियों से प्रेरणा लेकर हम भी अपनी सांस्कृतिक- सामाजिक परंपराओं को बचाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।

इसी प्रवाह के साथ इंटरनेट ने भी हमारे जीवन में गहरे तक प्रवेश कर लिया है, उसने पूरी दुनिया को एक छत के नीचे ला खड़ा किया है, और हम एक ग्लोबल परिवार बन गए हैं अब तो इंटरनेट में हिन्दी व अन्य भाषाओं में काम करना आसान होते जा रहा है। पढऩे- लिखने वालों के लिए उसने अनेक नए रास्ते खोल दिए हैं। इसलिए पत्र- पत्रिकाएं प्रकाशित होने के साथ- साथ इंटरनेट पर भी तुरंत ही आ जाती हैं और उसका दायरा प्रदेश, देश से निकल कर पूरी दुनिया तक हो जाता है। निश्चित ही यह पत्रिका इंटरनेट पर भी उपलब्ध रहेगी।

कुल जमा यह कि जीवन को समग्र रूप से समृद्ध बनाने में सहायक, समाज के विभिन्न आयामों से जुड़े रचनात्मक विचारों पर आधारित सुरूचिपूर्ण और पठनीय पत्रिका पाठकों तक पंहुचे, ऐसा ही एक छोटा सा प्रयास है उदंती.com। इस प्रयास के प्रारंभ में ही छत्तीसगढ़ और देश भर से रचनाकारों ने सहयोग दे कर मेरा उत्साहवर्धन किया है, यह मेरे लिए अनमोल है, मैं सबकी सदा आभारी रहूंगी।

यह प्रथम अंक इस विश्वास के साथ आप सबको समर्पित है कि आपका सहयोग सदैव मिलता रहेगा। आप सबकी प्रतिक्रिया एवं सुझाव का हमेशा स्वागत है। 


खुशहाली के इंतजार में धान का कटोरा

खुशहाली के इंतजार में धान का कटोरा
- चन्द्रशेखर साहू
केन्द्र के फैसले के मुताबिक एक नवंबर 1957 को अस्तित्व में आए मध्यप्रदेश से 'छत्तीसगढ़ नवंबर 2000 को अलग हो गया। आठ बरस बीत गए। कई प्रकार के प्रश्न मन में कौंध रहे हैं कि यदि अब भी छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ वासियों की समस्याओं को मूल रूप से समझा न गया और वर्षों से छत्तीसगढ़ में अभाव में जीने वालों की पीड़ाओं के निराकरण को प्राथमिकता न दी गयी, तो छत्तीसगढ़ राज्य बनाने का औचित्य जिन उद्देश्यों को लेकर किया गया है क्या वह पूरा हो पायेगा? ऐसे कितने यह प्रश्न है जो इस नये राज्य के अस्तित्व में आने के बाद भी अनुत्तरित हैं। क्या हम अब भी इन प्रश्नों के उत्तर तलाशेंगे, ताकि यहां के अवरूद्ध विकास की गति उन्मुक्त होने के साथ-साथ नक्सलवाद की विभिषिका का भी सामाजिक समाधान अपने-आप हो जाये।
दरअसल प्रश्न यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य में खुशहाली किसके लिए चाहिए? उनके लिए जो केवल छत्तीसगढ़ के नाम पर दिखावा व कुछ भी खेल करते हैं और सदैव सत्ता की चाशनी में डूबे हुए हैं। अथवा वे जो वन क्षेत्र व दुर्गम इलाकों में रहते हुए विकास के पथ से कोसों दूर हैं। वास्तव में इनके लिए ही तो चाहिए खुशहाली। मौजूदा छत्तीसगढ़ के चित्र में अकाल, बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी और पलायन ही लोगों की नियति से जुड़ हुए हैं। राज्य में विकास का एजेन्डा तय करते समय इन सब बिन्दुओं को केन्द्र में क्यों नहीं रखा जाता? यह चर्चा इसलिए भी जरुरी है कि बरस- दर- बरस राज्य बनने के जश्न और सरकार बनाने की आपाधापी में ऐसी वास्तविकताओं का दरकिनार होना नितांत संभव है। छत्तीसगढ़ विविध प्रकार के वन, जल, जीवजंतु और खनिजों से ओतप्रोत अंचल है। जिसके बारे में कहा जाता है जमीन के भीतर तो अमीरी है पर जमीन के ऊपर गरीबी है। लगभग 1100 मिलीलीटर से लेकर 1700 मिलीलीटर के बीच वर्षा वाला यह क्षेत्र न केवल विविधताओं से भरा है बल्कि 207, 34 करोड़ घन मीटर प्रतिवर्ष वर्षा जल प्राप्त होने के बावजूद सूखे से ग्रसित है। यही बड़ी चुनौती राज्य के लिए सबसे पहली है। तभी तो अकाल मुक्त छत्तीसगढ़ की कल्पना साकार हो सकेगी।
'धान का कटोराÓ के रूप में देश के आर्थिक नक्शे में पहचाने जाने वाले छत्तीसगढ़ का कुल भौगोलिक क्षेत्र 14.4 मिलियन हेक्टेयर में फैला है इसी तरह आबादी भी एक करोड़ 96 लाख को पार करते हुए 2 करोड़ को छू रही है। यहां गांवों की संख्या 20 हजार है तो छोटे बड़े 95 नगरीय क्षेत्र हैं। छत्तीसगढ़ में कुल जनसंख्या के, करीब 40 फीसदी लोग आदिवासी व अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। वैसे भारत के अलग आदिवासी संस्कृति वाले बस्तर में कुल आबादी के 63.3 तथा सरगुजा में 53.6 प्रतिशत आदिवासी निवास करते हैं जबकि संभागीय मुख्यालय वाले रायपुर और बिलासपुर सहित 12 जिलों में पिछड़े वर्ग की बहुलता है। समूचे छत्तीसगढ़ में कोई 51 फीसदी आबादी पिछड़े वर्गों की कहलाती है।
छत्तीसगढ़ अपने साल वनों के लिए जाना जाता है। कुल वन क्षेत्र 36 फीसदी हिस्से में साल वन आज भी विद्यमान हैं। दूसरा स्थान सागौन के वनों का है। इसके अलावा बांस साजा, सरई, बीजा, अर्जुन, शीशम तथा बबूल बहुतायत से हैं। इसी से वन उत्पादों में छत्तीसगढ़ इमारती लकड़ी के उत्पादन में अग्रणी स्थान रखता है। बस्तर की इमली पूरे दक्षिण भारत की आवश्यकता को बहुत हद तक आपूर्ति करता है। बीड़ी उद्योग में लगने वाला तेंदूपत्ता भी वन राजस्व का महत्वपूर्ण स्रोत है। इसी के साथ अन्य लघु वनोपज पर बड़ी तादाद में लोग आजीविका के लिए आश्रित रहते हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ के वन से बहुत से फायदे तो गिनाये जा सकते हैं किंतु यह कहना आसान नहीं कि राज्य बनने के इतने बरस बाद भी वन विनाश को रोकने और पर्यावरण को सुधारने के साथ बरसात को पुन: लौटाने का आश्वासन बनेगा।
कई योजनाकारों का मानना है कि छत्तीसगढ़ राज्य देश में खनिज राज्य के रूप में उभर सकता है क्योंकि यहां 1386 करोड़ टन कोयला, 180 टन लौह अयस्क, 60 करोड़ टन डोलोमाइट, 17 करोड़ टिन अयस्क, 4.1 करोड़ टन बाक्साइट और चुने के पत्थर (लाइमस्टोन) व ग्रेनाइट के असमित भंडार हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वनवासी क्षेत्र मैनपुर-देवभोग में उच्च स्तर की हीरे की खदान हैं जिसके सर्वेक्षण व पूर्वेक्षण में कई बड़ी कंपनियों की दिलचस्पी है। यहीं पर विश्व प्रसिद्ध अलैक्टजेनराइट जैसा बहुमूल्य पत्थर मिलता है जिसकी तस्करी के रास्ते अभी बंद नहीं हुये हैं। अन्य कीमती खनिजों में सोने के अतिरिक्त कोरेन्डम, गारनेट, रुबी, मानिक आदि की उपलब्धता भी है। यहां तक की आणविक खनिजों का भी पर्याप्त भंडार होने की पुष्टिï हो चुकी है। सभी प्रकार के खनिजों के होने के बावजूद शासकों की तदबीर से यहां की तकदीर और तस्वीर को बदला क्यों नहीं गया? यह प्रश्न स्वाभाविक है। संभव है यही कारक छत्तीसगढ़ राज्य की आकांक्षा को बलवती बनाने में सहायक सिद्ध हुई हो। पर अब तो नीति-निर्धारकों और योजनाकारों को रेखांकित करना होगा की राज्य के विकास में इस प्रकार की खनिज संपदा का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं।
जल संपदा की दृष्टिï से छत्तीसगढ़ क्षेत्र में 30.44 लाख हेक्टेयर मीटर धरातलीय जल सतह पर उपलब्ध है। इसमें वर्षा जल का योगदान सर्वाधिक है। यानी कोई 20 मिलीयन हेक्टेयर वार्षिक बारिश का पानी इसमें शामिल है। उसका 25 फीसदी भाग भी उपयोग में नहीं आ रहा। भूमिगत उपलब्धता भी प्रतिवर्ष 60 लाख क्यूबिक मीटर है जिसका उपयोग 5-6 प्रतिशत ही हो पाता है। जबकि राष्‍ट्रीय औसत 23 प्रतिशत है। पश्चिम मध्यप्रदेश में 56.3 प्रतिशत भूमिगत जल का उपयोग हो रहा है।
एक आंकलन के अनुसार अकेले रायपुर जिले में नदी नालों की लंबाई 3 हजार कि.मी. है। अंचल की संजीवनी नदी महानदी के बहाव का अधिकांश क्षेत्र यहां है। इसकी अनेक सहायक नदियां हैं जैसे शिवनाथ, मांड, पैरी, हसदेव, सौंडूर, खारुन व जौंक, ये सब नदियां मिलकर महानदी को जीवनदायनी नदी में तब्दील करती हैं, फिर भी यहां की धरती प्यासी है। पीने के पानी के अभाव से हर साल लोग पीडि़त रहते हैं। ऐसे प्राकृतिक संपदा के होते हुए भी दूषित पानी से कितने लोग हर वर्ष काल कवलित होते हैं इसका हिसाब कौन देगा?
औद्योगिक तीर्थ भिलाई, कोरबा, जैसे स्थान छत्तीसगढ़ में स्थित हैं। सीमेंट उत्पादन का बहुत केन्द्र विकसित हो चुका है। देश के कुल उत्पादन का 20 फीसदी सीमेंट एक ही अंचल में होता है। बैलाडीला का लौह अयस्क जापान को आधुनिक तकनीकी राष्टï्र बनाने में पूरक सिद्ध हुआ है। बिजली का उत्पादन अकेले कोरबा में 2 हजार मैगावाट से अधिक है और विद्युत के अलावा जल विद्युत पैदा करने की संभावनाएं यहां काफी हैं। तब भी प्रति व्यक्ति विद्युत खपत सबसे कम छत्तीसगढ़ में है। मध्यप्रदेश के कुल 15 लाख पंप कनेक्शन में मात्र 1 लाख पंप कनेक्शन यहां है। उद्योगों की एक श्रृंखला खड़ी होने के बावजूद बेरोजगारी यहां की बड़ी ही विकराल समस्या है।
आखिरी छोर पर खड़े व अंधेरों से घिरे लोगों की आशंका यह है कहीं ऐसा न हो कि समृद्धि की दस्तक मात्र कुछ संपन्न जनों तक ही सिमटी रह जाये और छत्तीसगढ़ वासी अपने गांवों और वनों में दलित और उपेक्षित ही रह जाएं। उसे पता ही नहीं कि कब 36गढ़ राज्य बन गया है और उसका आलोक कुछ लोगों तक ही सिमट कर रह गया। जब तक आम जनों तक तेजी से छत्तीसगढ़ के नवनिर्माण का आलोक नहीं पहुंचता तब तक छत्तीसगढ़ की सार्थकता कैसे सिद्ध हो पाएगी?
यह सही है कि राजनीति और अफसरशाही का चरित्र बदलना कठिन है लेकिन अच्छे-बुरे लोग तो सभी क्षेत्रों में होते हैं। ऐसी दशा में नये ऊर्जावान लोग विकास का तानाबाना बुनें, यह सहज अपेक्षा पालना कोई अतिरेक नहीं। यही बिंदु इस अंचल के विकास की भावना लेकर कार्य करने वाले अधिकारियों, कर्मियों की नियुक्ति पर लागू करने की आवश्यकता है क्योंकि राजनीतिकबाज अपना उल्लू सीधा करने के लिए कोई भी मुद्दा उछाल सकते हैं। अत: ऐसे तत्व न पनपने पाएं यह सावधानी रखना लाजमी होगा। छत्तीसगढ़ की भूमि रत्नगर्भा है। ईब व अन्य नदियों के रेत में सोने के कण हैं तो देवभोग-मैनपुर की एक लंबी पट्टी अपने में बेशकीमती हीरों को समेटे हुए है। अपार जल राशि और पर्याप्त जनशक्ति, विकास की धुरी बन सकता है। इसलिए प्राथमिकताओं का निर्धारण करते समय यह गौर करना सामयिक होगा कि पंजाब और हरियाणा में हरितक्रांति से स्वत: स्फूर्त होकर औद्योगिक क्रांति जिस प्रकार फलित हो सकी, वैसा यहां भी हो सके छत्तीसगढ़ की संस्कृति मौलिक होने के साथ विशिष्ट है। यहां हर प्रकार के औपचरिक संबंधों का महत्व है। गोवर्धन, महाप्रसाद, गंगाजल, भोजली, मितान जैसे अटूट संबंध एक बार बनने के बाद आजीवन बने रहते हैं।
समरसता, सौहार्द, सरलता यहां सर्वत्र व्याप्त है, केवल सजगता इस बात की चाहिए कि कहीं राजनीति के घोड़े बेलगाम दौड़ते हुए छत्तीसगढ़ की प्रगति को अवरुद्ध न कर दें।

देश के नक्शे पर छत्तीसगढ़ कहाँ है?

देश के नक्शे पर छत्तीसगढ़ कहाँ है?
- विनोद साव


पर्यटन का जो भी मानचित्र देश में प्रकाशित हो रहा है, उसमें यह स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ का देश के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के बीच कोई स्थान नहीं बन पा रहा है। देश के हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित किसी भी पर्यटन साहित्य या गाइड पुस्तिका को देखें या पर्यटन स्थलों को दर्शाने वाले शे को देखें तो उसमें छत्तीसगढ़ क्षेत्र के किसी भी स्थान को प्रमुखता से नहीं दर्शाया जा रहा है। कभी किसी शे में भिलाई को एक औद्योगिक स्थल के रुप में दिखा दिया जाता है, या किसी पर्यटन पुस्तिका में बस्तर के माड़िया- मूड़िया आदिवासियों के बारे में संक्षेप में कुछ बता दिया जाता है। इन दोनों ही उदाहरणों से समूचे छत्तीसगढ़ प्रांत का देश के पर्यटन जगत में वह स्थान नहीं बनता जिसके लिए कोई पर्यटन स्थल जाना जाता हैं। हर साल देश भर सें देशाटन या तीर्थाटन के लिए निकलने वाले लाखों सैलानी और तीर्थयात्री अपनी यात्रा के लिए छत्तीसगढ़ की ओर उन्मुख नहीं हो पा रहे हैं।
देश का हृदय स्थल
..पर केवल पिकनिक स्पॉट :
देश का यह हृदय स्थल रहने बसने के लिए तो देश का स्वर्ग माना जाता है। इस मायने में कि यहां का वातावरण बड़ा शान्त और सहिष्णु है। अपनी आजीविका की खोज में देश के किसी भी हिस्से से यहां आने और फिर यहां बस जाने वालों के लिए तो यह सचमुच स्वर्ग है। पर पर्यटन की दृष्टि से घुमन्तू जीवन जीने वालों की प्राथमिकता में यह सबसे नीचे आने वाला प्रदेश है। राज्य के नवनिर्माण के आठ वर्षों में स्थिति आज भी वैसी ही है जबकि दो सिरमौर सत्तादल अपनी- अपनी ताकत दिखा गए हैं। अभी तक हालत यह है इस राज्य के दर्शनीय स्थल पर्यटन के विराट रुप को प्राप्त नहीं कर पाए हैं और मात्र पिकनिक स्पॉट बनकर ही रह गए हैं जहां सबेरे सबेरे टाटा सूमो में बैठकर घुम कड़ लोगों का एक समूह उतरता है और शाम-रात तक अपने घर वापस लौट जाता है।
घुमक्‍कड़ छत्तीसगढ़िया :
यह सही है कि छत्तीसगढ़ के लोग तीर्थ या़त्राएं बहुत करते हैं। और यहां गांवों से भी हर साल हजारों तीर्थयात्री देश के अनेक तीर्थस्थानों के लिए निकल पड़ते हैं। इनमें इलाहाबाद, बनारस, तिरुपति, रामेश्वरम, पुरी, गंगासागर, शिरडी और आजकल अमरनाथ जाने वालों की संख्या अधिक है। पर ऐसी ही तीर्थयात्रा या किसी भी प्रकार के पर्यटन के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ आने वालों का कोई आंकड़ा खोजा जाए तो हमारा पर्यटन एवं संस्कृति विभाग बगलें झांकने लगेगा। शायद यही कारण है कि पर्यटन की आस और प्यास लिये छत्तीसगढ़ का जन मानस यात्रा के लिए बाहर जाने को हरदम एक पैर पर खड़ा रहता है। यात्रा के नाम पर खर्च करने में आगे यह नवप्रदेश वैसा ही है जैसा बंगाल और महाराष्ट्र। देश के किसी भी तीर्थस्थान पर गांव से आए छत्तीसगढ़िया लोगों के समूह को देखा जा सकता है। यहां हर घर के भगवान खोली (कमरे) में तिरुपति बालाजी और सांई बाबा के चित्र भी देखे जा सकते हैं।
विरासत में मिली विकास की धीमी गति :
पर्यटन विकास की धीमी गति इस राज्य को विरासत में मिली है। यही हाल अविभाजित राज्य मध्यप्रदेश का था। जंगल, पहाड़ और कई प्राकृतिक स्थलों से समृद्घ रहने के बावजूद पर्यटन विकास में मध्यप्रदेश हमेशा ही एक पिछड़ा हुआ राज्य माना गया। पर्यटन के नाम पर यहां राज्य की नीति में कोई उत्साह उमंग कभी दिखा नहीं। पचमढ़ी, भे़डाघाट, खजुराहो, मांडवगढ़ और उज्जैन जैसे सुन्दर दर्शनीय स्थलों के होने के बाद भी कोई पर्यटन नीति होने के कारण भी एक गरीब राज्य की छवि मध्यप्रदेश की बनी रही। कसम से आपने मध्यप्रदेश देखा ही नहीं जैसे दिलकश जुमले फेंकने के बाद भी देश का सबसे बड़ा यह राज्य पर्यटन विकास के मामले में सबसे पीछे ही रहा। जबकि इसके पास सतपु़डा और विंध्याचल जैसी खूबसूरत पहाड़ियॉ हैं। दो ज्योतिर्लिंग - महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर हैं। इन्दौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर जैसे अपने समय के प्रसिद्घ और समृद्घ नगर रहे। उसके बाद भी पर्यटन सुविधाओं की दृष्टि से मध्यप्रदेश का बुरा हाल है तो छत्तीसगढ़ का या होगा जिसके पास मध्यप्रदेश के बराबर नैसर्गिक, पौराणिक और ऐतिहासिक सम्पदा नहीं है।
फिर भी छत्तीसगढ़ :
अलग हो जाने के बाद छत्तीसगढ़ को लगभग एक चौथाई भूखण्ड मिला है। जो छोटा राज्य हो जाने के बाद भी यह देश के क्फ् राज्यों से बड़ा राज्य माना जाता है। अब इस राज्य के जंगल से मिलने वाला राजस्व इतना तो है कि वह पर्यटन के लिए जितना संभव हो पाए, कर सके। अब यह राज्य अपना हिस्सा अलग पाकर इसके पर्यटन को किस तरह बढ़ावा दे सकता है यह इसके लिए एक बड़ी चुनौती होगी। प्राकृतिक संसाधनों की तो यहां कोई कमी नहीं है। राज्य की वन सम्पदा से प्राप्त भारी भरकम राजस्व शुल्क से अपनी विकास नीतियों के जरिये यहां के पर्यटन की संभावनाओं को तलाशना होगा। वर्तमान उद्योग नीति में पर्यटन को किस तरह से आय का जरिया बनाया जा सकता है, राज्य की इस व्यावसायिक दृष्टि को भी देखना होगा। योंकि दिनोंदिन पर्यटन उद्योग सारी दुनियां में पूंजी निवेश और आय का केवल एक प्रमुख श्रोत बल्कि एक भारी भरकम व्यवसाय बनता जा रहा है।
क्‍या है छत्तीसगढ़ के पास :
वर्तमान स्थिति इस राज्य की यह है कि अपनी विरासत में मिली कमी के कारण इसके पास पहले से ही कोई बड़ा तीर्थस्थान या पर्यटन स्थल नहीं है। कोई मुख्य धाम है यहॉं। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक भी ज्योतिर्लिंग इसके क्षेत्र में नही है। ही समुद्र तट के यह किनारे बसा राज्य है। इसकी पर्वत श्रृंखलाओं में उतनी उंचाइयाँ और बर्फीली चोटियाँ नहीं हैं जिससे कोई हिल-स्टेशन प्रसिद्घ होता है। नदियां तो इस राज्य की बारहों माह बह नहीं पाती हैं उनकी धार टूटती रहती है। कई नदियां तो लगभग लुप्तप्राय स्थिति में हैं। यही वे प्राकृतिक संसाधन हैं जो किसी राज्य को पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते है। यहां कोई मेट्रोसिटी या महानगर भी नहीं है जिसकी चकाचौंध लोगों को खींचती हो। रायपुर में अभी अभी खुले पहले मल्टीप्ले शॉपिंग माल ने कुछ हलचल की है। रायपुर की व्यावसायिक महत्ता और परिवहन केन्द्र शुरु से ही उड़ीसा और आन्ध्रप्रदेश को अपनी ओर खिंचते रहे हैं।
या यह पर्यटन विहीन राज्यों में शामिल हो जावेगा :
अपने नैसर्गिक और भौतिक संसाधन होने के बाद भी देश के कई बड़े राज्य पर्यटन के मामले में बहुत पीछे चल रहे हैं। योंकि उनकी कोई सुनीति नहीं बन पाई है। कुछ तो पर्यटन विहीन हो गए हैं। इनमें उत्तर में हरियाणा, दक्षिण में आन्ध्रप्रदेश, पूर्व में गुजरात और पश्चिम में बिहार - ऐसे ही बड़े और पुराने राज्य हैं जिनकी पर्यटन उद्योग में कोई छवि नहीं बन पाई है। बिहार और झारखण्ड तो लगभग पर्यटनविहीन हो चले हैं। छत्तीसगढ़ की तरह इन राज्यों में भी पर्यटन विकास एक भारी चुनौती है। यहां भी देश भर से सैलानियों का आगमन नहीं होता। जब बिहार के विश्व प्रसिद्घ नालन्दा और बोधगया को देखने के लिए पर्याप्त सैलानी पहंुच नहीं पा रहे हैं तो छत्तीसगढ़ के सिरपुर और राजिम को देखने कौन आवेगा?
मिल जाता अगर अमरकंटक :
अमरकंटक एक ऐसा स्थान है जो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सिवान पर आता है। यह शहडोल जिले और बिलासपुर जिले की सीमा पर बसा है। कई बार इसे भ्रमवश छत्तीसगढ़ के शे पर दर्शा दिया जाता है। वैसे भी अमरकंटक में ज्यादा दर्शनार्थी छत्तीसगढ़ से ही पहुंचते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य जब अलग बना तो मध्यप्रदेश के बालाघाट, मंडला और शहडोल जिले में अपने को छत्तीसगढ़ राज्य में ही शामिल कर लिए जाने की सुगबुगाहट थी। यह सुगबुगहाट अमरकंटक में और भी जोरों से थी योंकि अमरकंटकवासी शुरु से ही मध्यप्रदेश में अपने को उपेक्षित मानते रहे हैं। अमरकंटक का प्राकृतिक सौन्दर्य पचमढ़ी के जैसा होते हुए भी यहां सदैव सुविधाओं का अभाव रहा है। इसलिए भी मध्यप्रदेश के अन्य पर्यटन स्थलों की तुलना में अमरकंटक सबसे कमजोर बैठता था। जबकि छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों की तुलना अगर अमरकंटक से की जाए तो अमरकंटक ही सबसे महत्वपूर्ण हो जाएगा। आज भी अमरकंटक यदि छत्तीसगढ़ को दे दिया जाए तो इसका मान मनुहार सबसे ज्यादा होगा और यह छत्तीसगढ़ का सबसे अच्छा पर्यटन स्थल बन जाएगा। इसमें अमरकंटक और छत्तीसगढ़ दोनों का भला होगा।
कुछ बातें हैं छत्तीसगढ़ में :
बावजूद इन कमियों के छत्तीसगढ़ के पास जो प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं उनमें बस्तर, सरगुजा, बारनवापारा, उदन्ती और अचनाकमर ( जिसे अचानकमार भी कह दिया जाता है) जैसे वन प्रांतर हैं। चीतरकोट और तीरथगढ़ जैसे जलप्रपात हैं। केशकाल और कांगेर जैसी घाटियाँ हैं गंगरेल, हसदो-बांगो, खूंटा और तांदुला बांध जैसे विशाल जलाशय हैं। डोंगरगढ़, रतनपुर और राजिम जैसे मानता वाले तीर्थस्थल हैं। सिरपुर, मल्हार, और जांजगीर जैसे दुर्लभ पुरातत्व हैं। इनके संरक्षण संवद्र्घन और विकास का हल्ला तो होता ही रहता है। इन्हें आगे बढ़ाए जाने की मांग कभी जनमानस में होती है तो कभी जनप्रतिनिधियों में। सरकारी स्तर पर भी यदा कदा प्रयास किए जाते हैं। पर कुल मिलाकर कोई ऐसी तस्वीर नहीं बन पाती कि जिससे छत्तीसगढ़ देश भर से आने वाले सैलानियों के लिए आकर्षण का एक बड़ा केन्द्र बन जाय।
हो जाए कुछ टूर पैकेज :
इन सब दृष्टियों से देखा जाए तो छत्तीसगढ़ के कुछ स्थान तो बहुत ही आकर्षक हैं जहां पर्यटन विकास की अच्छी संभावनाएं हैं। इनमें चीतरकोट और तीरथगढ़ दो ऐसे जल प्रपात हैं जिनकी जो का जलप्रपात देश में अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। चीतरकोट (जिसका चलताउ नाम चित्रकूट या चित्रकोट है - पर बस्तर की हल्बी बोली में चीतरकोट है ) यह जलप्रपात देश के सबसे चौडे प्रपात के रुप में माना जाता है। पूरी की पूरी इन्द्रावती नदी यहां अपने जिस वैभव और गरिमामय रुप में नीचे गिरती है उसका सानी कहीं और देखने को नहीं मिलता। इसे रात्रि के फ्लड लाइट में देखना और भी रोमांचकारी लगता है। दूसरा जलप्रपात तीरथगढ़ है जो देश के सबसे उंचे झरनों मे से एक है। यह झरना झरझराते हुए बहुत उंचाई से लहराते हुए नीचे गिरता है। यह असंख्य जलबिन्दुओं की फुहार पैदा करता हुआ अपने आसपास कोहरे सदृश्य मनोरम दिखलाई देता है। नीचे गिरने के बाद यह कई चरणों में प्रपात बनाता हुआ चलता है। यह पचमढ़ी के प्रपातों की तरह फाल टू फाल ट्रैकिंग के लिए भी उपयु झरना है। यह पर्यटकों के स्नान के लिए बहुत आनंददायक और सुविधाजनक है। यहीं कांगेर घाटी के आसपास कुटुम्बसर कैलाश गुफाओं का अपना अद्भुत नजारा है। जगदलपुर को बेस सेन्टर बनाकर इसे एक अच्छे पैकेज का रुप दिया जा सकता है। एक बार हजार डालर वाला पैकेज बनाकर अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को लुभाने की महत्वाकांक्षी कोशिश की गई थी जो असफल हुई। इसे फिर से व्यावहारिक बनाना होगा। उसी तरह छत्तीसगढ़ के दो वन प्रांतर अपने घने जंगलों और आरामदेह वातावरण के लिए प्रसिद्घ हैं - ये हैं बारनवापारा और उदन्ती के सुन्दर और सुरम्य वन। ये वन्यप्राणियों के लिए एक ऐशगाह है। जहां उन्हें उन्मु जीवन जीते हुए देखा जा सकता है। विशेषकर बारनवापारा के पहाड़विहीन पठारी जंगल तो अद्भुत नजारा पेश करते हैं। इन दोनों ही जंगलों के बीच की सड़कें भी खूब बनी हैं। जिनसे यहां पहुंचना और घूमना फिरना आसान है। यहां भ्रमण करने आनंद उठाने के लिए एक आकर्षक पैकेज तैयार किया गया था जो बेहतर तालमेल के अभाव में बन्द हो गया। इसे आरंभ कर प्रचारित किए जाने की जरुरत है। उसी तरह सिरपुर अपने बौद्घकालीन पुरातात्विक वैभव के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे शायद वर्ड हैरिटेज में लिया भी गया है। महानदी के किनारे सिरपुर का फैला पसरा पुरातत्व अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ उपस्थित है। यहां चाहें तो इनके इतिहास और पुरातत्व को व्याख्यायित करते हुए लाइट एंड साउण्ड शो का कार्यक्रम सप्ताह में दो दिन शनिवार, रविवार तथा अन्य छुटि्टयों के दिन चलाए जा सकते हैं।
रेल चली सरगुजा की ओर :
रेल चलाने का ज्यादा हल्ला हुआ था जगदलपुर के लिए। जिसमें रावघाट परियोजना से जोडते हुए दल्ली राजहरा रेल लाइन का विस्तार कर उसे जगदलपुर से जोडा जाए पर रेल चलवा लेने में बाजी मार ली अम्बिकापुर ने। जिसका परिणाम सामने आया दुर्ग-अम्बिकापुर सप्रेस। रात में दुर्ग से छूटने वाली इस ट्रेन में अम्बिकापुर के लिए आरक्षण आसानी से सुलभ है। सूर्योदय से पहले ही में सरगुजा की पहाड़ियों और जंगलों का दर्शन सम्मोहक दृश्य पैदा करता है। उस पर अम्बिकापुर का नया रेलवे स्टेशन किसी महल की तरह खूबसूरत बन पड़ा है। ऐसी कोई विशेष ट्रेन चलाकर सरगुजा का एक आकर्षक टूर पैकेज भी तैयार किया जा सकता है।


अरकू से आशा :
आन्ध्रप्रदेश की अरकू घाटी का नाम पिछले कुछ अरसों से पर्यटन स्थल के नाम पर चमका है। सैलानी उस तरफ आकर्षित हो रहे हंै। इससे यह साबित होता है कि दर्शनीय स्थान तो हर राज्य के पास हर तरह के होते हैं पर उनके भी उभरने के दिन आते हैं बशर्ते उस दिशा में कोशिश की जा रही हो। अरकू घाटी उसी रेल लाइन पर स्थित है जो विशाखापटनम से जगदलपुर किरन्दुल जाती है। उस लाइन के कई सुरम्य स्थल छत्तीसगढ़ क्षेत्र में आते हैं। यह भी माना जाता है कि दुनियाँ में ब्रॉडगेज रेल लाइन का सबसे उंचा स्थान भी इसी लाइन पर स्थित है। जिस तरह पर्यटन के क्षेत्र में अरकू आगे बढ़ रहा है और उसे देखने के लिए देश के सैलानी आगे बढ़ रहे हैं उसी तरह छत्तीसगढ़ के भी दर्शनीय स्थलों को सामने लाया जा सकता है। इस तरह की कोशिशों के लिए छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति विभाग एवं छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल को जी-तोड मेहनत करनी होगी। इन सबके विकास और प्रचार के लिए विशेषज्ञों को लेकर रणनीति बनानी होगी, खूब खूब काम करना होगा। तब जाकर हम देश के दीगर इलाकों से सैलानी अपने राज्य में ला पाएंगे।